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तमी॑ळिष्व॒ यो अ॒र्चिषा॒ वना॒ विश्वा॑ परि॒ष्वज॑त्। कृ॒ष्णा कृ॒णोति॑ जि॒ह्वया॑ ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam īḻiṣva yo arciṣā vanā viśvā pariṣvajat | kṛṣṇā kṛṇoti jihvayā ||

पद पाठ

तम्। ई॒ळि॒ष्व॒। यः। अ॒र्चिषा॑। वना॑। विश्वा॑। प॒रि॒ऽस्वज॑त्। कृ॒ष्णा। कृ॒णोति॑। जि॒ह्वया॑ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:60» मन्त्र:10 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:28» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा कैसा हो, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् जन ! जैसे सूर्य्य (अर्चिषा) सत्कार से (विश्वा) समस्त (वना) किरणों का (परिष्वजत्) सब ओर से सम्बन्ध करता है तथा (कृष्णा) पदार्थों की खीचों को =पदार्थों का कर्षण (कृणोति) करता है, वैसे (यः) जो (जिह्वया) जिह्वा से सत्य आचरण का सम्बन्ध करे (तम्) उसकी आप (ईळिष्व) प्रशंसा वा याचना करो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य के प्रकाश से सब पदार्थ यथावत् दीखते हैं, वैसे ही विद्या से सब पदार्थ प्रकाशित होते हैं ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! यथा सूर्य्योऽर्चिषा विश्वा वना परिष्वजत् कृष्णा कृणोति तथा यो जिह्वया सत्याचारं परिष्वजत्तं त्वमीळिष्व ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) (ईळिष्व) प्रशंसाऽध्यन्विच्छ वा (यः) (अर्चिषा) सत्कारेण (वना) वनानि किरणान् (विश्वा) सर्वाणि (परिष्वजत्) सर्वतः सम्बध्नाति (कृष्णा) कर्षणानि (कृणोति) (जिह्वया) ॥१०॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यप्रकाशेन सर्वे पदार्था यथावद् दृश्यन्ते तथैव विद्यया सर्वे पदार्थाः प्रकाश्यन्ते ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे सूर्याच्या प्रकाशामुळे सर्व पदार्थ स्पष्ट दिसतात तसेच विद्येने सर्व पदार्थ जाणता येतात. ॥ १० ॥