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उ॒तादः प॑रु॒षे गवि॒ सूर॑श्च॒क्रं हि॑र॒ण्यय॑म्। न्यै॑रयद्र॒थीत॑मः ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

utādaḥ paruṣe gavi sūraś cakraṁ hiraṇyayam | ny airayad rathītamaḥ ||

पद पाठ

उ॒त। अ॒दः। प॒रु॒षे। गवि॑। सूरः॑। च॒क्रम्। हि॒र॒ण्यय॑म्। नि। ऐ॒र॒य॒त्। र॒थिऽत॑मः ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:56» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को कैसा भाषण करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (रथीतमः) अतीव रथादि पदार्थों से युक्त (सूरः) वीर पुरुष (अदः) उस (हिरण्ययम्) सुवर्णादि युक्त वा तेजोमय (चक्रम्) चक्र को (नि, ऐरयत्) निरन्तर प्रेरित करे वह (उत) निश्चय से (परुषे) कठोर व्यवहार में और (गवि) वाणी में नहीं प्रवृत्त हो ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य कठोर भाषण को छोड़ कोमल भाषण करता है, वह सदा आनन्दी होता है ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः कीदृशं भाषणं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यो रथीतमः सूरोऽदो हिरण्ययं चक्रं न्यैरयदुत स परुषे गवि न प्रवर्त्तेत ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (अदः) तत् (परुषे) कठोरे व्यवहारे (गवि) वाचि (सूरः) वीरः (चक्रम्) (हिरण्ययम्) सुवर्णादियुक्तं तेजोमयं वा (नि) (ऐरयत्) प्रेरयेत् (रथीतमः) अतिशयेन रथादियुक्तः। अत्र संहितायामिति दीर्घः ॥३॥
भावार्थभाषाः - यो मनुष्यः कठोरभाषणं विहाय कोमलभाषणं करोति स सदाऽऽनन्दी भवति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो माणूस कठोर भाषणाचा त्याग करून कोमल वाणी बोलतो तो सदैव आनंदी असतो. ॥ ३ ॥