य ए॑नमा॒दिदे॑शति कर॒म्भादिति॑ पू॒षण॑म्। न तेन॑ दे॒व आ॒दिशे॑ ॥१॥
ya enam ādideśati karambhād iti pūṣaṇam | na tena deva ādiśe ||
यः। ए॒न॒म्। आ॒ऽदिदे॑शति। क॒र॒म्भ॒ऽअत्। इति॑। पू॒षण॑म्। न। तेन॑। दे॒वः। आ॒ऽदिशे॑ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब छः ऋचावाले छप्पनवें सूक्त का प्रारम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में किसको किसके लिये क्या उपदेश करने योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ केन कस्मै किमुपदेष्टव्यमित्याह ॥
यः करम्भाद्देव एनं पूषणमादिदेशति इति तेन सहाऽहमन्यथा नादिशे ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात उपदेशक, श्रोता व पूषा शब्दाच्या अर्थाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.