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माकि॑र्नेश॒न्माकीं॑ रिष॒न्माकीं॒ सं शा॑रि॒ केव॑टे। अथारि॑ष्टाभि॒रा ग॑हि ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mākir neśan mākīṁ riṣan mākīṁ saṁ śāri kevaṭe | athāriṣṭābhir ā gahi ||

पद पाठ

माकिः॑। नेश॑म्। माकी॑म्। रिष॑न्। माकी॑म्। सम्। शा॒रि॒। केव॑टे। अथ॑। अरि॑ष्टाभिः। आ। ग॒हि॒ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:54» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:20» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

किसी को हिंसा नहीं करनी चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जो कभी (माकिः) न (नेशत्) नष्ट हो तथा किसी को (माकीम्) न (रिषत्) नष्ट करे (अथ) इसके अनन्तर (केवटे) कुँए में (माकीम्) न (सम्, शारि) नष्ट करे वा कुँए के निमित्त किसी को न नष्ट करे उसको पाकर (अरिष्टाभिः) अहिंसित क्रियाओं से आप हम लोगों को (आ, गहि) प्राप्त हूजिये ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो नष्ट कर्म नहीं करता न किसी को नष्ट करता है तथा कुँए के जल से भी किसी को नहीं पीड़ा देता, वही सब से सङ्ग करने योग्य और न हिंसा करनेवाला होता है ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

केनापि हिंसा नैव कार्येत्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! यः कदाचिन्माकिर्नेशत्किंचन माकीं रिषदथ केवटे माकीं सं शारि तं प्राप्यारिष्टाभिस्त्वमस्माना गहि ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (माकिः) निषेधे (नेशत्) नश्येत् (माकीम्) (रिषत्) हिंस्यात् (माकीम्) (सम्) (शारि) हिंस्यात् (केवटे) कूपे। केवट इति कूपनाम। (निघं०३.२३) (अथ) (अरिष्टाभिः) अहिंसिताभिः क्रियाभिः (आ) (गहि) आगच्छ ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यो नष्टं कर्म न करोति नापि कञ्चन हिनस्ति कूपोदकेनापि कञ्चिन्न पीडयति स एव सर्वान् सङ्गन्तुमर्होऽहिंस्रो जायते ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जो अहितकारक कर्म करीत नाही किंवा कुणाला नष्ट करीत नाही, विहिरीतील जलाने त्रस्त करीत नाही त्याची संगती सर्वांनी धरावी, असा तो अहिंसक असतो. ॥ ७ ॥