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या ते॒ अष्ट्रा॒ गोओ॑प॒शाघृ॑णे पशु॒साध॑नी। तस्या॑स्ते सु॒म्नमी॑महे ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yā te aṣṭrā goopaśāghṛṇe paśusādhanī | tasyās te sumnam īmahe ||

पद पाठ

या। ते॒। अष्ट्रा॑। गोऽओ॑पशा। आघृ॑णे। प॒शु॒ऽसाध॑नी। तस्याः॑। ते॒। सु॒म्नम्। ई॒म॒हे॒ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:53» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:18» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को क्या बढ़ा कर किसकी प्रार्थना करनी चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (आघृणे) सब ओर से पशुविद्या के प्रकाश करनेवाले (या) जो (ते) आपकी (अष्ट्रा) व्याप्त होनेवाली (गोओपशा) जिसमें गौएँ परस्पर सोती हैं और (पशुसाधनी) जिससे पशुओं को सिद्ध करते हैं, वह क्रिया वर्त्तमान है (तस्याः) उससे (ते) आपके (सुम्नम्) सुख को हम लोग (ईमहे) जाँचते अर्थात् माँगते हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस क्रिया से पशु बढ़ें, उस क्रिया को बढ़ाकर सुख को माँगो ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः किं वर्धयित्वा किं प्रार्थनीयमित्याह ॥

अन्वय:

हे आघृणे ! या तेऽष्ट्रा गोओपशा पशुसाधनी वर्तते तस्यास्ते सुम्नं वयमीमहे ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (या) (ते) तव (अष्ट्रा) व्यापिका (गोओपशा) गाव आ उप शेरते यस्यां सा (आघृणे) समन्तात्पशुविद्याप्रकाशक (पशुसाधनी) पशून् साध्नुवन्ति यया सा (तस्याः) (ते) तव (सुम्नम्) सुखम् (ईमहे) याचामहे ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यया क्रियया पशवो वर्धेरंस्तां वर्धयित्वा सुखं याचध्वम् ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्या क्रियेमुळे पशूंची वाढ होईल असे काम करून सुखाची याचना करा. ॥ ९ ॥