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अदि॑त्सन्तं चिदाघृणे॒ पूष॒न्दाना॑य चोदय। प॒णेश्चि॒द्वि म्र॑दा॒ मनः॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aditsantaṁ cid āghṛṇe pūṣan dānāya codaya | paṇeś cid vi mradā manaḥ ||

पद पाठ

अदि॑त्सन्तम्। चि॒त्। आ॒घृ॒णे॒। पूष॑न्। दाना॑य। चो॒द॒य॒। प॒णेः। चि॒त्। वि। म्र॒द॒। मनः॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:53» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:17» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् जन किसके लिये क्या प्रेरणा करे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (आघृणे) सब ओर से प्रकाशात्मन् (पूषन्) पुष्टि करनेवाले विद्वन् ! आप (अदित्सन्तम्) देने की अनिच्छा करते हुए (चित्) भी देनेवाले को (दानाय) देने के लिये (चोदय) प्रेरणा देओ (चित्) फिर भी देनेवालो को और अपने (मनः) मन को भी प्रेरणा देओ और (पणेः) जुआ खेलनेवाले के भी अन्तःकरण को (वि, म्रदा) विशेषता से मर्दो अर्थात् दण्ड देओ ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापक, उपदेशक वा राजन् ! विद्यादि शुभगुणों की प्रवृत्ति के लिये न देनेवालों को भी दान करने के लिये प्रेरणा देओ और जुआ खेलनेवाले पाखण्डियों को मारो अर्थात् ताड़ना देओ ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वान् कस्मै किं प्रेरयेदित्याह ॥

अन्वय:

हे आघृणे पूषँस्त्वमदित्सन्तं चिदपि दातारं दानाय चोदय चिदपि दातारं स्वस्य मनश्च चोदय पणेश्चिन्मनो वि म्रदा ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अदित्सन्तम्) दातुमनिच्छन्तम् (चित्) अपि (आघृणे) समन्तात् प्रकाशात्मन् (पूषन्) पुष्टिकर विद्वन् (दानाय) (चोदय) प्रेरय (पणेः) द्यूतकर्त्तुः (चित्) अपि (वि) विशेषेण (म्रदा) दण्डय। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (मनः) अन्तःकरणम् ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापकोपदेशकौ राजन्वा ! विद्यादिशुभगुणस्य प्रवृत्तयेऽदातॄनपि दानकरणाय प्रेरय द्यूतकर्तॄंश्च पाखण्डिनो हिन्धि ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे अध्यापक, उपदेशक किंवा राजा ! विद्या इत्यादी शुभ गुणात प्रवृत्त व्हावे यासाठी दान न देणाऱ्या लोकांनाही दान देण्याची प्रेरणा द्या व द्यूत खेळणाऱ्या ढोंगी लोकांना दंड द्या. ॥ ३ ॥