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अ॒भि नो॒ नर्यं॒ वसु॑ वी॒रं प्रय॑तदक्षिणम्। वा॒मं गृ॒हप॑तिं नय ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhi no naryaṁ vasu vīram prayatadakṣiṇam | vāmaṁ gṛhapatiṁ naya ||

पद पाठ

अ॒भि। नः॒। नर्य॑म्। वसु॑। वी॒रम्। प्रय॑तऽदक्षिणम्। वा॒मम्। गृ॒हऽप॑तिम्। न॒य॒ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:53» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:17» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब स्त्रीपुरुषों को क्या चाहने योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पुष्टि करनेवाले ! आप (नः) हम लोगों को (प्रयतदक्षिणम्) जिससे प्रयत्नपूर्वक दक्षिणा दी गई उस (नर्यम्) मनुष्यों में उत्तम (वसु) धन और (वामम्) प्रशंसित (वीरम्) शुभलक्षणयुक्त पुरुष को (गृहपतिम्) गृहस्वामी को भी (अभि, नय) सब ओर से पहुँचाओ ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् वा विदुषी ! आप हम लोगों के लिये उत्तम पति, उत्तम भार्या, प्रशंसित धन की प्राप्ति करा के उत्तम शिक्षा से धर्म्म आचरण की प्राप्ति कराइये ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ स्त्रीपुरुषैः किमेष्टव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे पूषंस्त्वं नः प्रयतदक्षिणं नर्यं वसु वामं वीरं गृहपतिं चाभि नय ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अभि) आभिमुख्ये (नः) अस्मान् (नर्यम्) नृषु साधु (वसु) धनम् (वीरम्) शुभलक्षणान्वितं पुरुषम् (प्रयतदक्षिणम्) प्रयताः प्रयत्नेन दत्ता दक्षिणा यस्मात्तत् (वामम्) प्रशस्तम् (गृहपतिम्) गृहस्वामिनम् (नय) प्रापय ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् विदुषी वा ! त्वमस्मदर्थमुत्तमं पतिमुत्तमां भार्यां प्रशस्तं धनं प्रापय्य सुशिक्षया धर्म्माचारं प्रापय ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वान किंवा विदुषींनो ! तुम्ही आम्हाला उत्तम पती व उत्तम भार्या, प्रशंसित धन यांची प्राप्ती करवून द्या व सुशिक्षणाने धर्माचरणी बनवा. ॥ २ ॥