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इन्द्रो॒ नेदि॑ष्ठ॒मव॒साग॑मिष्ठः॒ सर॑स्वती॒ सिन्धु॑भिः॒ पिन्व॑माना। प॒र्जन्यो॑ न॒ ओष॑धीभिर्मयो॒भुर॒ग्निः सु॒शंसः॑ सु॒हवः॑ पि॒तेव॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indro nediṣṭham avasāgamiṣṭhaḥ sarasvatī sindhubhiḥ pinvamānā | parjanyo na oṣadhībhir mayobhur agniḥ suśaṁsaḥ suhavaḥ piteva ||

पद पाठ

इन्द्रः॑। नेदि॑ष्ठम्। अव॑सा। आऽग॑मिष्ठः। सर॑स्वती। सिन्धु॑ऽभिः। पिन्व॑माना। प॒र्जन्यः॑। नः॒। ओष॑धीभिः। म॒यः॒ऽभुः। अ॒ग्निः। सु॒ऽशंसः॑। सु॒ऽहवः॑। पि॒ताऽइ॑व ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:52» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:15» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अवसा) रक्षा आदि से (नेदिष्ठम्) अतीव समीप को (आगमिष्ठः) अतीव आनेवाला वा (सिन्धुभिः) नदियों से (पिन्वमाना) संयुक्त (सरस्वती) प्रशंसित सरस् वेग जिसका उस नदी के समान (सुशंसः) शोभन तथा (सुहवः) शोभन सत्कारवाले (अग्निः) अग्नि के समान (ओषधिभिः) ओषधियों से युक्त (पर्जन्यः) मेघ (मयोभुः) सुख हुवाने तथा (पितेव) जन्म देनेवाले पिता के समान (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् राजा (नः) हम लोगों को पालना करता है, वह राजा हम लोगों से निरन्तर सत्कार करने योग्य है ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो राजा न्याय और पुरुषार्थ से प्रजा की निरन्तर रक्षा करता है, उसकी पिता के समान प्रजाजन पालना करते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! योऽवसा नेदिष्ठमागमिष्ठः सिन्धुभिः पिन्वमाना सरस्वतीव सुशंसः सुहवोऽग्निरिवौषधीभिः पर्जन्यो मयोभुरिव पितेवेन्द्रो नः पालयति स राजाऽस्माभिः सततं सत्कर्त्तव्यः ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (नेदिष्ठम्) अतिशयेन समीपम् (अवसा) रक्षणादिना (आगमिष्ठः) अतिशयेनागन्ता (सरस्वती) प्रशस्तं सरो वेगो यस्याः सा नदी (सिन्धुभिः) नदीभिः (पिन्वमाना) संयुक्ता (पर्जन्यः) मेघः (नः) अस्मान् (ओषधीभिः) (मयोभुः) सुखंभावुकः (अग्निः) वह्निरिव (सुशंसः) शोभनस्तुतिः (सुहवः) शोभनो हवस्सत्कारो यस्य (पितेव) जनक इव ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यो राजा न्यायपुरुषार्थाभ्यां प्रजाः सततं रक्षति तं प्रजाः पितरमिव पालयन्ति ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो राजा न्यायाने व पुरुषार्थाने प्रजेचे सतत रक्षण करतो तेव्हा प्रजा पित्याप्रमाणे त्याच्या आज्ञांचे पालन करते. ॥ ६ ॥