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इ॒मं नो॑ अग्ने अध्व॒रं होत॑र्वयुन॒शो य॑ज। चि॒कि॒त्वान्दैव्यं॒ जन॑म् ॥१२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

imaṁ no agne adhvaraṁ hotar vayunaśo yaja | cikitvān daivyaṁ janam ||

पद पाठ

इ॒मम्। नः॒। अ॒ग्ने॒। अ॒ध्व॒रम्। होतः॑। व॒यु॒न॒ऽशः। य॒ज॒। चि॒कि॒त्वान्। दैव्य॑म्। जन॑म् ॥१२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:52» मन्त्र:12 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:16» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य कैसे राजा को करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतः) देनेवाले (अग्ने) अग्नि के समान वर्त्तमान राजन् ! आप (वयुनशः) उत्तम ज्ञान से (नः) हमारे (इमम्) इस (अध्वरम्) न नष्ट करने योग्य न्याय व्यवहार को (चिकित्वान्) जाननेवाले आप (दैव्यम्) विद्वानों से सत्कार को प्राप्त हुए (जनम्) शुभाचरणों से प्रसिद्ध जन को (यज) अच्छे प्रकार प्राप्त हों ॥१२॥
भावार्थभाषाः - हे राजा प्रजाजन ! आप जो हमारे बीच शुभ गुणकर्मस्वभावयुक्त हो, उसी को राज्य करने में अच्छे प्रकार युक्त करो ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः कीदृशं राजानं कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे होतरग्ने ! वयुनशो न इममध्वरं चिकित्वांस्त्वं दैव्यं जनं यज ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इमम्) (नः) अस्माकम् (अग्ने) पावक इव वर्त्तमान (अध्वरम्) अहिंसनीयं न्यायव्यवहारम् (होतः) दातः (वयुनशः) प्रज्ञानेन (यज) सङ्गच्छस्व (चिकित्वान्) ज्ञानवान् (दैव्यम्) विद्वद्भिः सत्कृतम् (जनम्) शुभाचरणैः प्रसिद्धम् ॥१२॥
भावार्थभाषाः - हे राजप्रजाजन ! त्वं योऽस्माकं मध्ये शुभगुणकर्मस्वभावयुक्तः स्यात्तमेव राज्यकरणे सङ्गतं कुरु ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा प्रजाजनांनो ! जो आमच्यामध्ये शुभ, गुण, कर्म स्वभावयुक्त असेल त्यालाच राज्य करण्यासाठी युक्त करा. ॥ १२ ॥