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विश्वे॑ दे॒वा ऋ॑ता॒वृध॑ ऋ॒तुभि॑र्हवन॒श्रुतः॑। जु॒षन्तां॒ युज्यं॒ पयः॑ ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśve devā ṛtāvṛdha ṛtubhir havanaśrutaḥ | juṣantāṁ yujyam payaḥ ||

पद पाठ

विश्वे॑। दे॒वाः। ऋ॒त॒ऽवृधः॑। ऋ॒तुऽभिः॑। ह॒व॒न॒ऽश्रुतः॑। जु॒षन्ता॑म्। युज्य॑म्। पयः॑ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:52» मन्त्र:10 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:15» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या कामना कर विद्याओं को प्राप्त होवें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ऋतावृधः) सत्य विद्या के बढ़ानेवालो (हवनश्रुतः) जो अध्ययन को सुनते हैं, वे (विश्वे, देवाः) सब विद्वान् ! आप लोग (ऋतुभिः) वसन्तादिकों के साथ (युज्यम्) समाधान करने योग्य (पयः) दूध, जल वा अन्न को (जुषन्ताम्) सेवें ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जो अध्ययन करने और परीक्षा कराने को चाहें वे मद करने, कुत्सित बुद्धि वा नाश करनेवाले पदार्थों को छोड़ के दुग्ध आदि बुद्धि के बढ़ानेवाले उत्तम पदार्थों को सेवें ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किमुशित्वा विद्याः प्राप्नुयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे ऋतावृधो हवनश्रुतो विश्वे देवा ! भवन्त ऋतुभिर्युज्यं पयो जुषन्ताम् ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसः (ऋतावृधः) सत्यविद्यावर्धकाः (ऋतुभिः) वसन्तादिभिः (हवनश्रुतः) ये हवनमध्ययनं शृण्वन्ति ते (जुषन्ताम्) (युज्यम्) समाधातुमर्हम् (पयः) दुग्धमुदकमन्नं वा। पय इत्युदकनाम ॥ (निघं०१.१२) अन्ननाम च (निघं०२.७) ॥१०॥
भावार्थभाषाः - येऽध्येतुं परीक्षयितुं चेच्छेयुस्ते मादककुत्सितबुद्धिनाशकानि द्रव्याणि त्यक्त्वा पय आदीनि बुद्धिवर्द्धकानि सेवेरन् ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे अध्ययनाची व परीक्षा देण्याची इच्छा बाळगतात त्यांनी मादक द्रव्याचे, कुत्सित बुद्धी उत्पन्न करणाऱ्या पदार्थाचे ग्रहण करू नये. दूध वगैरे बुद्धी वाढविणारे पदार्थ घ्यावेत. ॥ १० ॥