नम॒ इदु॒ग्रं नम॒ आ वि॑वासे॒ नमो॑ दाधार पृथि॒वीमु॒त द्याम्। नमो॑ दे॒वेभ्यो॒ नम॑ ईश एषां कृ॒तं चि॒देनो॒ नम॒सा वि॑वासे ॥८॥
nama id ugraṁ nama ā vivāse namo dādhāra pṛthivīm uta dyām | namo devebhyo nama īśa eṣāṁ kṛtaṁ cid eno namasā vivāse ||
नमः॑। इत्। उ॒ग्रम्। नमः॑। आ। वि॒वा॒से॒। नमः॑। दा॒धा॒र॒। पृ॒थि॒वीम्। उ॒त। द्याम्। नमः॑। दे॒वेभ्यः॑। नमः॑। ई॒शे॒। ए॒षा॒म्। कृ॒तम्। चि॒त्। एनः॑। न॒म॒सा। आ। वि॒वा॒से॒ ॥८॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्य सदैव नम्र हों, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्याः सदैव नम्रा भवेयुरित्याह ॥
हे मनुष्या ! यन्नमः पृथिवीमुत द्यां दाधार तदहमुग्रं नम आ विवासे देवेभ्यो नम आ विवासे नमो नम ईशे तेन नमसैषां कृतं चिदेन इदा विवासे ॥८॥