अपि॒ पन्था॑मगन्महि स्वस्ति॒गाम॑ने॒हस॑म्। येन॒ विश्वाः॒ परि॒ द्विषो॑ वृ॒णक्ति॑ वि॒न्दते॒ वसु॑ ॥१६॥
api panthām aganmahi svastigām anehasam | yena viśvāḥ pari dviṣo vṛṇakti vindate vasu ||
अपि॑। पन्था॑म्। अ॒ग॒न्म॒हि॒। स्व॒स्ति॒ऽगाम्। अ॒ने॒हस॑म्। येन॑। विश्वाः॑। परि॑। द्विषः॑। वृ॒णक्ति॑। वि॒न्दते॑। वसु॑ ॥१६॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर कैसे मार्ग सिद्ध करने चाहियें, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः कीदृशा मार्गा निर्मातव्या इत्याह ॥
हे मनुष्या ! येन वीरो विश्वा द्विषः परि वृणक्ति वसु विन्दते तमनेहसं स्वस्तिगां पन्थां वयमप्यगन्महि ॥१६॥