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अ॒भि त्यं वी॒रं गिर्व॑णसम॒र्चेन्द्रं॒ ब्रह्म॑णा जरित॒र्नवे॑न। श्रव॒दिद्धव॒मुप॑ च॒ स्तवा॑नो॒ रास॒द्वाजाँ॒ उप॑ म॒हो गृ॑णा॒नः ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhi tyaṁ vīraṁ girvaṇasam arcendram brahmaṇā jaritar navena | śravad id dhavam upa ca stavāno rāsad vājām̐ upa maho gṛṇānaḥ ||

पद पाठ

अ॒भि। त्यम्। वी॒रम्। गिर्व॑णसम्। अ॒र्च॒। इन्द्र॑म्। ब्रह्म॑णा। ज॒रि॒तः॒। नवे॑न। श्रव॑त्। इत्। हव॑म्। उप॑। च॒। स्तवा॑नः। रास॑त्। वाजा॑न्। उप॑। म॒हः। गृ॒णा॒नः ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:50» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:9» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों को क्या उपदेश कर क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जरितः) स्तुति करनेवाले जन ! आप (महः) बहुत (वाजान्) अन्नादिकों की (गृणानः) प्रशंसा करते हुए (उप, रासत्) समीप में दें और (स्तवानः) स्तुति करते हुए (हवम्) सत्य की प्रशंसा को (उप, श्रवत्) सुनें (इत्) ही तथा (नवेन) नवीन (ब्रह्मणा) धन वा अन्नादि से (त्यम्) उस (गिर्वणसम्) वाणियों से सेव्यमान (वीरम्) वीरवान् तथा (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवान् का (च) भी (अभि, अर्च) सब ओर से सत्कार करो ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! आप सब के प्रश्नों को सुनकर समाधान देते हुए और अन्नादि पदार्थों की प्राप्ति कराते हुए धार्मिक वीरों को और धनाढ्यों को सर्वदा शिक्षा देवें, जिससे इनका ऐश्वर्य अन्याय मार्ग में नष्ट न हो ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विदुषा किमुपदिश्य किं कारयितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे जरितो ! भवान् महो वाजान् गृणान उप रासत् स्तवानो हवमुप श्रवदित्। नवेन ब्रह्मणा त्यं गिर्वणसं वीरमिन्द्रं चाभ्यर्च ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अभि) (त्यम्) तम् (वीरम्) वीरवन्तम् (गिर्वणसम्) गीर्भिः सेव्यमानम् (अर्च) सत्कुरु (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तम् (ब्रह्मणा) धनेनान्नादिना वा (जरितः) स्तावक (नवेन) नूतनेन (श्रवत्) शृणुयात् (इत्) एव (हवम्) सत्यप्रशंसाम् (उप) (च) (स्तवानः) स्तुवन् (रासत्) (वाजान्) अन्नादीन् (उप) (महः) महतः (गृणानः) प्रशंसन् ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वंस्त्वं सर्वेषां प्रश्नाञ्छ्रुत्वा समादधनन्नादीन् प्रापयन् धार्मिकान् वीरान् धनाढ्यांश्च सर्वदा शिक्षेथा येनैतेषामैश्वर्यमन्यायमार्गे विनष्टं न स्यात् ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो ! तुम्ही सर्व प्रश्न ऐकून उत्तरे द्या. धार्मिक वीरांना व धनवान लोकांना अन्न इत्यादीची प्राप्ती करून सदैव शिक्षण द्या. ज्यामुळे त्यांचे ऐश्वर्य अन्याय मार्गाने नष्ट होऊ नये. ॥ ६ ॥