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आ नो॑ रु॒द्रस्य॑ सूनवो॑ नमन्ताम॒द्या हू॒तासो॒ वस॒वोऽधृ॑ष्टाः। यदी॒मर्भे॑ मह॒ति वा॑ हि॒तासो॑ बा॒धे म॒रुतो॒ अह्वा॑म दे॒वान् ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā no rudrasya sūnavo namantām adyā hūtāso vasavo dhṛṣṭāḥ | yad īm arbhe mahati vā hitāso bādhe maruto ahvāma devān ||

पद पाठ

आ। नः॒। रु॒द्रस्य॑। सू॒नवः॑। न॒म॒न्ता॒म्। अ॒द्य। हू॒तासः॑। वस॑वः। अधृ॑ष्टाः। यत्। ई॒म्। अर्भे॑। म॒ह॒ति। वा॒। हि॒तासः॑। बा॒धे। म॒रुतः॑। अह्वा॑म। दे॒वान् ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:50» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:8» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् कैसे हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यत्) जो (हूतासः) बुलाये हुए (अधृष्टाः) अप्रगल्भ (वसवः) आदि कोटिवाले विद्वान् जन (बाधे) विलोड़न के निमित्त (अर्भे) थोड़ी अवस्थावाले (महति, वा) वा बहुत अवस्थावाले जन में (हितासः) हित करनेवाले वा (रुद्रस्य) दुष्टों के रुलानेवाले के (सूनवः) सन्तान (मरुतः) मनुष्य (नः) हम लोगों को (अद्या) आज (आ, नमन्ताम्) अच्छे प्रकार नमें उन (देवान्) विद्वानों को हम लोग (ईम्) सब ओर से (अह्वाम) चाहें ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् जन, चक्रवर्ती राजा वा क्षुद्रजन में पक्षपात छोड़ कर हित के लिये वर्त्तमान, नम्र, विद्वानों के प्रिय मनुष्य हैं, वे यहाँ भाग्यशाली होते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यद्ये हूतासोऽधृष्टा वसवो बाधेऽर्भे महति वा हितासो रुद्रस्य सूनवो [मरुतो] नोऽद्याऽऽनमन्तां तान् देवान् वयमीमह्वाम ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (नः) अस्मान् (रुद्रस्य) दुष्टानां रोदयितुः (सूनवः) अपत्यानि (नमन्ताम्) (अद्या) इदानीम्। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (हूतासः) कृताह्वानाः सन्तः (वसवः) आदिकोटिस्था विद्वांसः (अधृष्टाः) अप्रगल्भाः (यत्) ये (ईम्) सर्वतः (अर्भे) अल्पवयसि जने (महति) (वा) (हितासः) (बाधे) (मरुतः) मनुष्याः (अह्वाम) इच्छेम (देवान्) विदुषः ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसश्चक्रवर्त्तिनि राजनि क्षुद्रे जने वा पक्षपातं विहाय हिताय वर्त्तमाना नम्रा विद्वत्प्रिया मनुष्याः सन्ति तेऽत्र भाग्यशालिनो वर्त्तन्ते ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान लोक चक्रवर्ती राजा किंवा क्षुद्र लोकांत भेदभाव न करता त्यांचे हित करतात, नम्र असून विद्वानांचे प्रिय असतात ते भाग्यशाली असतात. ॥ ४ ॥