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ते नो॑ रु॒द्रः सर॑स्वती स॒जोषा॑ मी॒ळ्हुष्म॑न्तो॒ विष्णु॑र्मृळन्तु वा॒युः। ऋ॒भु॒क्षा वाजो॒ दैव्यो॑ विधा॒ता प॒र्जन्या॒वाता॑ पिप्यता॒मिषं॑ नः ॥१२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

te no rudraḥ sarasvatī sajoṣā mīḻhuṣmanto viṣṇur mṛḻantu vāyuḥ | ṛbhukṣā vājo daivyo vidhātā parjanyāvātā pipyatām iṣaṁ naḥ ||

पद पाठ

ते। नः॒। रु॒द्रः। सर॑स्वती। स॒ऽजोषाः॑। मी॒ळ्हुष्म॑न्तः। विष्णुः॑। मृ॒ळ॒न्तु॒। वा॒युः। ऋ॒भु॒क्षाः। वाजः॑। दैव्यः॑। वि॒ऽधा॒ता। प॒र्जन्या॒वाता॑। पि॒प्य॒ता॒म्। इष॑म्। नः॒ ॥१२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:50» मन्त्र:12 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:10» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् जन क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अध्यापक और उपदेशको ! (सरस्वती) बहुत विज्ञानयुक्त (सजोषाः) समान प्रीति सेवनेवाले (पर्जन्यावाता) मेघ और वात के समान आप दोनों जैसे (ते) वे अर्थात् (रुद्रः) दुष्टों को रुलानेवाला (विष्णुः) व्यापक अग्नि (वायुः) पवन (ऋभुक्षाः) मेधावी जन (वाजः) अन्न (दैव्यः) विद्वानों से किया हुआ व्यवहार और (विधाता) विधान करनेवाला ये सब (मीळ्हुष्मन्तः) बहुत वीर्य सेचक आदि गुणोंवाले होते हुए (नः) हम लोगों को (मृळन्तु) सुखी करें, वैसे (नः) हम लोगों के लिये (इषम्) अन्नादि पदार्थों को (पिप्यताम्) ब़ढ़ाओ ॥१२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वानो ! जैसे ईश्वर से निर्मित किये हुए पृथिवी आदि पदार्थ प्राणियों को सुखी करते हैं, वैसे ही तुम विद्यादान से सब को सुखी करो ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे अध्यापकोपदेशकौ ! सरस्वती सजोषाः पर्जन्यावातेव भवन्तौ यथा ते रुद्रो विष्णुर्वायुर्ऋभुक्षा वाजो दैव्यो विधाता मीळ्हुष्मन्तो नो मृळन्तु तथा न इषं पिप्यताम् ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) (नः) अस्मान् (रुद्रः) दुष्टानां रोदयिता (सरस्वती) बहुविज्ञानयुक्ता (सजोषाः) समानप्रीतिसेवी (मीळ्हुष्मन्तः) मीळ्हुषो बहवो वीर्यसेचकादयो गुणा येषां ते (विष्णुः) व्यापको विद्युदग्निः (मृळन्तु) (वायुः) (ऋभुक्षाः) मेधावी (वाजः) अन्नम् (दैव्यः) देवैः कृतः (विधाता) विधानकर्त्ता (पर्जन्यावाता) पर्जन्यश्च वातश्च तौ (पिप्यताम्) वर्धयेताम् (इषम्) अन्नादिकम् (नः) अस्मभ्यमस्मान् वा ॥१२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! यथेश्वरेण निर्मिताः पृथिव्यादयः पदार्थाः प्राणिनः सुखयन्ति तथैव यूयं विद्यादिदानेन सर्वान् सुखयत ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो ! जसे ईश्वराने निर्माण केलेले पृथ्वी इत्यादी पदार्थ प्राण्यांना सुखी करतात तसे तुम्ही विद्यादान करून सर्वांना सुखी करा. ॥ १२ ॥