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स तत्कृ॑धीषि॒तस्तूय॑मग्ने॒ स्पृधो॑ बाधस्व॒ सह॑सा॒ सह॑स्वान्। यच्छ॒स्यसे॒ द्युभि॑र॒क्तो वचो॑भि॒स्तज्जु॑षस्व जरि॒तुर्घोषि॒ मन्म॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa tat kṛdhīṣitas tūyam agne spṛdho bādhasva sahasā sahasvān | yac chasyase dyubhir akto vacobhis taj juṣasva jaritur ghoṣi manma ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। तत्। कृ॒धि॒। इ॒षि॒तः। तूय॑म्। अ॒ग्ने॒। स्पृधः॑। बा॒ध॒स्व॒। सह॑सा। सह॑स्वान्। यत्। श॒स्यसे॑। द्युऽभिः॑। अ॒क्तः। वचः॑ऽभिः। तत्। जु॒ष॒स्व॒। ज॒रि॒तुः। घोषि॑। मन्म॑ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:5» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:7» मन्त्र:6 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश प्रतापयुक्त ! (यत्) जो आप (द्युभिः) प्रकाशमान दिनों से (अक्तः) रात्रि जैसे वैसे (शस्यसे) स्तुति किये जाते हो वह आप (वचोभिः) वचनों से (जरितुः) स्तुति करनेवाले का (घोषि) वाणी जिसमें ऐसा (मन्म) विज्ञान है (तत्) उसका (जुषस्व) सेवन करो (सः) वह (सहस्वान्) सहन करनेवाले आप (सहसा) बल से (स्पृधः) स्पर्धा करते हैं जिनमें उन सङ्गग्रामसेनाओं की (बाधस्व) बाधा करते हो तथा (तूयम्) शीघ्र (इषितः) प्रेरित हुए (तत्) उसको (कृधि) करो ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् और ईश्वर से प्रेरित हुए शीघ्र आलस्य का त्याग करके दिन रात्रि धर्म्म, अर्थ और मोक्ष की सिद्धि के लिये प्रयत्न करते हैं, वे योग्य होकर दुःखों को बाधित करते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यद्यस्त्वं द्युभिरक्त इव शस्यसे स त्वं यद् वचोभिर्जरितुर्घोषि मन्मास्ति तज्जुषस्व। सः सहस्वांस्त्वं सहसा स्पृधो बाधस्व तूयमिषितः संस्तत्कृधि ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (तत्) (कृधि) कुरु (इषितः) प्रेरितः (तूयम्) क्षिप्रम्। तूयमिति क्षिप्रनाम। (निघं०२.१५) (अग्ने) अग्निरिव प्रतापवन् (स्पृधः) स्पर्धन्ते यासु ताः सङ्ग्रामसेनाः (बाधस्व) (सहसा) बलेन (सहस्वान्) सहनकर्त्ता (यत्) यः (शस्यसे) स्तूयसे (द्युभिः) द्योतमानैर्दिनैः (अक्तः) रात्रिः (वचोभि) वचनैः (तत्) (जुषस्व) सेवस्व (जरितुः) स्तावकस्य (घोषि) घोषो यस्मिन्नस्ति तत् (मन्म) विज्ञानम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वदीश्वरप्रेरिताः सद्य आलस्यं विहायाऽहर्निशं धर्म्मार्थमोक्षसिद्धये प्रयतन्ते ते योग्या भूत्वा दुःखानि बाधन्ते ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ईश्वराकडून प्रेरणा मिळालेले जे लोक आळस सोडून दिवसरात्र धर्म, अर्थ, काम, मोक्षासाठी प्रयत्न करतात ते योग्य बनतात व दुःख नाहीसे करतात. ॥ ६ ॥