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त्वं वि॒क्षु प्र॒दिवः॑ सीद आ॒सु क्रत्वा॑ र॒थीर॑भवो॒ वार्या॑णाम्। अत॑ इनोषि विध॒ते चि॑कित्वो॒ व्या॑नु॒षग्जा॑तवेदो॒ वसू॑नि ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ vikṣu pradivaḥ sīda āsu kratvā rathīr abhavo vāryāṇām | ata inoṣi vidhate cikitvo vy ānuṣag jātavedo vasūni ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। वि॒क्षु। प्र॒ऽदिवः॑। सी॒द॒। आ॒सु। क्रत्वा॑। र॒थीः। अ॒भ॒वः॒। वार्या॑णाम्। अतः॑। इ॒नो॒षि॒। वि॒ध॒ते। चि॒कि॒त्वः॒। वि। आ॒नु॒षक्। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। वसू॑नि ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:5» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:7» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (चिकित्वः) शुद्ध बहुत बुद्धि से युक्त और (जातवेदः) उत्पन्न हुआ विज्ञान जिनको ऐसे हे राजन् ! जिस कारण (त्वम्) आप (आनुषक्) सङ्ग करनेवाले होते हुए (वसूनि) धनों की (विधते) सत्कार करनेवाले के लिये (वि, इनोषि) प्रेरणा करते हो और (आसु) इन (विक्षु) प्रजाओं में (क्रत्वा) बुद्धि से (वार्य्याणाम्) स्वीकार करने योग्यों के (रथीः) बहुत रथोंवाले (अभवः) होते हो (अतः) इस कारण से (प्रदिवः) उत्तम प्रकाश के मध्य में (सीदः) स्थित होइये ॥३॥
भावार्थभाषाः - वही राजा होने के योग्य होवे, जो राजविद्या को अच्छे प्रकार जाने ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे चिकित्वो जातवेदो राजन् ! यतस्त्वमानुषक् सन् वसूनि विधते वीनोषि। आसु विक्षु क्रत्वा वार्य्याणां रथीरभवोऽतः प्रदिवस्सीदः ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (विक्षु) प्रजासु (प्रदिवः) प्रकृष्टस्य प्रकाशस्य मध्ये (सीदः) सीद (आसु) (क्रत्वा) प्रज्ञया (रथीः) बहुरथवान् (अभवः) भवसि (वार्य्याणाम्) स्वीकर्त्तुमर्हाणाम् (अतः) अस्मात् (इनोषि) प्रेरयसि (विधते) सत्कर्त्रे (चिकित्वः) शुद्धबहुप्रज्ञायुक्त (वि) (आनुषक्) योऽनुसजति (जातवेदः) उत्पन्नविज्ञान (वसूनि) धनानि ॥३॥
भावार्थभाषाः - स एव राजा भवितुमर्हेद्यो राजविद्यां यथावद्विजानीयात् ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजविद्या चांगल्या प्रकारे जाणतो तोच राजा होण्यायोग्य असतो. ॥ ३ ॥