वांछित मन्त्र चुनें

आ यः प॒प्रौ भा॒नुना॒ रोद॑सी उ॒भे धू॒मेन॑ धावते दि॒वि। ति॒रस्तमो॑ ददृश॒ ऊर्म्या॒स्वा श्या॒वास्व॑रु॒षो वृषा श्या॒वा अ॑रु॒षो वृषा॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā yaḥ paprau bhānunā rodasī ubhe dhūmena dhāvate divi | tiras tamo dadṛśa ūrmyāsv ā śyāvāsv aruṣo vṛṣā śyāvā aruṣo vṛṣā ||

पद पाठ

आ। यः। प॒प्रौ। भा॒नुना॑। रोद॑सी॒ इति॑। उ॒भे इति॑। धू॒मेन॑। धा॒व॒ते॒। दि॒वि। ति॒रः। तमः॑। द॒दृ॒शे॒। ऊर्म्या॑सु। आ। श्या॒वासु॑। अ॒रु॒षः। वृषा॑। आ। श्या॒वाः। अ॒रु॒षः। वृषा॑ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:48» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:2» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम (यः) जो (भानुना) किरण से (उभे) दोनों (रोदसी) द्यावापृथिवी को (आ, पप्रौ) व्याप्त होता और (धूमेन) धूम से (दिवि) अन्तरिक्ष में (धावते) दौड़ता है तथा (श्यावासु) काली (ऊर्म्यासु) रात्रियों में जो (तमः) अन्धकार उसको (तिरः) तिरस्कार कर (अरुषः) लाल रंगवाला (वृषा) वर्षा का निमित्त है और जिसकी (श्यावाः) वेगवती किरणें विद्यमान हैं जो (अरुषः) कुछ लाली लिये हुए है वह (वृषा) वर्षा करनेवाला सूर्य्य (आ, ददृशे) अच्छे प्रकार देखा जाता है उसे (आ) अच्छे प्रकार जानो ॥६॥
भावार्थभाषाः - जिस बिजुलीरूप आग से भूमि और सूर्य्य दिखाते हैं, जिससे अधिक वेगवान् कोई नहीं तथा जो अन्धकार की निवृत्ति करनेवाला है, उसका अच्छे प्रकार प्रयोग करो ॥६॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यूयं यो भानुनोभे रोदसी आ पप्रौ धूमेन दिवि धावते श्यावासूर्म्यासु यत्तमस्तत्तिरस्कृत्याऽरुषो वृषा यस्य श्यावा अरुषो वृषा आ ददृशे तमाविजानीत ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (यः) (पप्रौ) व्याप्नोति (भानुना) किरणेन (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (उभे) (धूमेन) (धावते) (दिवि) अन्तरिक्षे (तिरः) तिरस्करणे (तमः) अन्धकारः (ददृशे) दृश्यते (ऊर्म्यासु) रात्रिषु। ऊर्म्येति रात्रिनाम। (निघं०१.७) (आ) (श्यावासु) कृष्णासु (अरुषः) आरक्तगुणः (वृषा) वर्षकः (आ) (श्यावाः) सवितुर्वेगवन्तः किरणाः। श्यावा इति सवितुरादिष्टोपयोगिनः। (निघं०१.१५) (अरुषः) (वृषा) वर्षकः ॥६॥
भावार्थभाषाः - येन विद्युदग्निना भूमिसूर्यौ प्रदृश्येते यस्मादधिको वेगवान् कोऽपि नास्ति योऽन्धकारनिवर्त्तकोऽस्ति तं यूयं सम्प्रयुङ्ध्वम् ॥६॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या विद्युतरूपी अग्नीमुळे भूमी व सूर्य दिसतात, ज्याच्यापेक्षा अधिक वेगवान कोणी नाही व जो अंधकाराचा नाश करणारा आहे त्याचा चांगल्या प्रकारे प्रयोग करा. ॥ ६ ॥