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आ मा॑ पूष॒न्नुप॑ द्रव॒ शंसि॑षं॒ नु ते॑ अपिक॒र्ण आ॑घृणे। अ॒घा अ॒र्यो अरा॑तयः ॥१६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā mā pūṣann upa drava śaṁsiṣaṁ nu te apikarṇa āghṛṇe | aghā aryo arātayaḥ ||

पद पाठ

आ। मा॒। पू॒ष॒न्। उप॑। द्र॒व॒। शंसि॑षम्। नु। ते॒। अ॒पि॒ऽक॒र्णे। आ॒घृ॒णे॒। अ॒घाः। अ॒र्यः। अरा॑तयः ॥१६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:48» मन्त्र:16 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:6 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:16


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य परस्पर कैसे वर्त्तें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पूषन्) पुष्टि करनेवाले (आघृणे) सब ओर से प्रकाशमान ! जिन (ते) आपके (अपिकर्णे) ढंपे हुए कर्ण में मैं (नु) शीघ्र सत्य की (शंसिषम्) प्रशंसा करूँ सो (अर्यः) स्वामी हुए आप (आ) सब ओर से (मा) मेरे (उप, द्रव) समीप आओ और जो (अरातयः) न देनेवाले जन हों उन्हें शीघ्र (अघाः) हनिये अर्थात् मारिये ॥१६॥
भावार्थभाषाः - हे पालनीय जन ! आप रक्षा के लिये मेरे समीप आओ, मैं सत्योपदेश से तुम्हें विचक्षण करूँ तथा हम सब लोग मिल के दुष्टों का विनाश करें ॥१६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

हे पूषन्नाघृणे ! यस्य तेऽपिकर्णेऽहं नु सत्यं शंसिषं सोऽर्यस्त्वमा मा मामुप द्रव य अरातयः स्युस्तान्नु अघाः ॥१६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (मा) माम् (पूषन्) पुष्टिकर्त्तः (उप) (द्रव) समीपमागच्छ (शंसिषम्) प्रशंसेयम् (नु) सद्यः (ते) तव (अपिकर्णे) आच्छादितश्रोत्रे (आघृणे) सर्वतो दीप्तिमान् (अघाः) हन्याः (अर्यः) स्वामी सन् (अरातयः) अदातारः ॥१६॥
भावार्थभाषाः - हे पालनीय जन ! त्वं रक्षार्थं मत्सन्निधिमागच्छाऽहञ्च सत्योपदेशेन विचक्षणं कुर्यां वयं सर्वे मिलित्वा दुष्टान् विनाशयेम ॥१६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे पालनकर्त्यांनो तुम्ही रक्षणासाठी माझ्याजवळ या, मी सत्योपदेशाने तुम्हाला बुद्धिमान करीन व आपण सर्वजण मिळून दुष्टांचा नाश करू. ॥ १६ ॥