अ॒ग॒व्यू॒ति क्षेत्र॒माग॑न्म देवा उ॒र्वी स॒ती भूमि॑रंहूर॒णाभू॑त्। बृह॑स्पते॒ प्र चि॑कित्सा॒ गवि॑ष्टावि॒त्था स॒ते ज॑रि॒त्र इ॑न्द्र॒ पन्था॑म् ॥२०॥
agavyūti kṣetram āganma devā urvī satī bhūmir aṁhūraṇābhūt | bṛhaspate pra cikitsā gaviṣṭāv itthā sate jaritra indra panthām ||
अ॒ग॒व्यू॒ति। क्षेत्र॑म्। आ। अ॒ग॒न्म॒। दे॒वाः॒। उ॒र्वी। स॒ती। भूमिः॑। अं॒हू॒र॒णा। अ॒भू॒त्। बृह॑स्पते। प्र। चि॒कि॒त्स॒। गोऽइ॑ष्टौ। इ॒त्था। स॒ते। ज॒रि॒त्रे। इ॒न्द्र॒। पन्था॑म् ॥२०॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्य कैसे आरोग्य को प्राप्त होवें, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्याः कथमारोग्यं प्राप्नुयुरित्याह ॥
हे बृहस्पते चिकित्सेन्द्र वैद्यराजंस्त्वत्सहायेन या उर्वी सत्यंहूरणा भूमिरभूद्यत्राऽगव्यूति क्षेत्रमभूतां देवा वयमागन्मेत्था गविष्टौ सते जरित्रे पन्थां प्रागन्म ॥२०॥