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यद्वा॑ तृ॒क्षौ म॑घवन्द्रु॒ह्यावा जने॒ यत्पू॒रौ कच्च॒ वृष्ण्य॑म्। अ॒स्मभ्यं॒ तद्रि॑रीहि॒ सं नृ॒षाह्ये॒ऽमित्रा॑न्पृ॒त्सु तु॒र्वणे॑ ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yad vā tṛkṣau maghavan druhyāv ā jane yat pūrau kac ca vṛṣṇyam | asmabhyaṁ tad rirīhi saṁ nṛṣāhye mitrān pṛtsu turvaṇe ||

पद पाठ

यत्। वा॒। तृ॒क्षौ। म॒घ॒ऽव॒न्। द्रु॒ह्यौ। आ। जने॑। यत्। पू॒रौ। कत्। च॒। वृष्ण्य॑म्। अ॒स्मभ्य॑म्। तत्। रि॒री॒हि॒। सम्। नृ॒ऽसह्ये॑। अ॒मित्रा॑न्। पृ॒त्ऽसु। तु॒र्वणे॑ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:46» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:28» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) न्याय से धन इकट्ठा करनेवाले ! आप (तृक्षौ) विद्या और श्रेष्ठ गुणों से प्राप्त (द्रुह्यौ) द्रोह करने योग्य (जने) मनुष्य में (यत्) जो (रिरीहि) प्राप्त कराइये और (पूरौ) पूर्ण बलवाले मनुष्य में (यत्) जो (वृष्ण्यम्) उत्तमों में हितकारक जो बल उसको प्राप्त कराइये (तत्) वह (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (च) और (कत्) कब प्राप्त कराइये और कब (वा) वा हम लोगों के (अमित्रान्) शत्रुओं को (नृषाह्ये) मनुष्यों से सहने योग्य सङ्ग्राम में (पृत्सु) सेनाओं में (तुर्वणे) हिंसन के लिये (सम्) अच्छे प्रकार (आ) सब ओर से प्राप्त कराइये ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जब आप उत्तम मनुष्यों में प्रतिष्ठा और दुष्टों में तिरस्कार धारण करें, तभी शत्रुओं के विजय के लिये योग्य होवें ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स राजा किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे मघवँस्त्वं तृक्षौ द्रुह्यौ जने यद्रिरीहि पूरौ जने यद्वृष्ण्यं रिरीहि तदस्मभ्यं च कत्प्रापयेः कदा वा चास्माकममित्रान् नृषाह्ये पृत्सु तुर्वणे समा रिरीहि ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) (वा) (तृक्षौ) विद्याशुभगुणप्राप्ते (मघवन्) न्यायोपार्जितधन (द्रुह्यौ) द्रोग्धुं योग्ये (आ) (जने) मनुष्ये (यत्) (पूरौ) पूर्णबले (कत्) कदा (च) (वृष्ण्यम्) वृषसु हितं बलम् (अस्मभ्यम्) (तत्) (रिरीहि) प्रापय (सम्) (नृषाह्ये) नृभिस्सोढुं योग्ये सङ्ग्रामे (अमित्रान्) शत्रून् (पृत्सु) सेनासु (तुर्वणे) हिंसनाय ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यदा त्वमुत्तमेषु मनुष्येषु प्रतिष्ठां दुष्टेषु तिरस्कारं दध्यास्तदैव शत्रुविजयाय योग्यो भवेः ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! जेव्हा तू उत्तम माणसात प्रतिष्ठा मिळवून दुष्टांचा तिरस्कार करशील तेव्हा शत्रूंवर विजय प्राप्त करता येईल. ॥ ८ ॥