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त्वामिद्धि हवा॑महे सा॒ता वाज॑स्य का॒रवः॑। त्वां वृ॒त्रेष्वि॑न्द्र॒ सत्प॑तिं॒ नर॒स्त्वां काष्ठा॒स्वर्व॑तः ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvām id dhi havāmahe sātā vājasya kāravaḥ | tvāṁ vṛtreṣv indra satpatiṁ naras tvāṁ kāṣṭhāsv arvataḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वाम्। इत्। हि। हवा॑महे। सा॒ता। वाज॑स्य। का॒रवः॑। त्वाम्। वृ॒त्रेषु॑। इ॒न्द्र॒। सत्ऽप॑तिम्। नरः॑। त्वाम्। काष्ठा॑सु। अर्व॑तः ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:46» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:27» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब चौदह ऋचावाले छयालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में फिर शिल्पविद्या को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य से युक्त जन ! (कारवः) कारीगर (नरः) जन हम लोग (त्वाम्) आपको (हि) ही (वाजस्य) विज्ञान के (साता) विभाग में (हवामहे) ग्रहण करें और (वृत्रेषु) धनों में (सत्पतिम्) श्रेष्ठों के पालनेवाले (त्वाम्) आपको पुकारें तथा (अर्वतः) घोड़ों को जैसे सारथी, वैसे (त्वाम्) आपको (काष्ठासु) दिशाओं में (इत्) ही पुकारें ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे धन से युक्त ! जो आप हम लोगों के सहायक होवें तो आपके धन से हम लोग शिल्पविद्या से अनेक पदार्थों को रचकर आपको बड़ा धनी करें ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ पुनः शिल्पविद्यामाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! कारवो नरो वयं त्वां हि वाजस्य साता हवामहे वृत्रेषु सत्पतिं त्वां हवामहेऽर्वतः सारथिरिव त्वां काष्ठास्विद्धवामहे ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वाम्) (इत्) एव (हि) (हवामहे) (साता) विभागे (वाजस्य) विज्ञानस्य (कारवः) कारकराः (त्वाम्) (वृत्रेषु) धनेषु (इन्द्र) (सत्पतिम्) सतां पालकम् (नरः) (त्वाम्) (काष्ठासु) दिक्षु (अर्वतः) अश्वानिव ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे धनाढ्य ! यदि त्वमस्माकं सहायो भवेस्तर्हि त्वद्धनेन वयं शिल्पविद्ययाऽनेकान् पदार्थान् रचयित्वा त्वामधिकं धनाढ्यं कुर्याम ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात राजा, वीर, युद्ध, गृह, शूरवीर व यान यांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

भावार्थभाषाः - हे धनवान लोकांनो ! जर तुम्ही आमचे सहायक व्हाल तर तुमच्या धनाने आम्ही शिल्पविद्येद्वारे अनेक पदार्थ निर्माण करून तुम्हाला अधिक धनवान करू. ॥ १ ॥