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वि दृ॒ळ्हानि॑ चिदद्रिवो॒ जना॑नां शचीपते। वृ॒ह मा॒या अ॑नानत ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vi dṛḻhāni cid adrivo janānāṁ śacīpate | vṛha māyā anānata ||

पद पाठ

वि। दृ॒ळ्हानि॑। चि॒त्। अ॒द्रि॒ऽवः॒। जना॑नाम्। श॒ची॒ऽप॒ते॒। वृ॒ह। मा॒याः। अ॒ना॒न॒त॒ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:45» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:22» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य किसका निवारण करके किसको प्राप्त होवें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अद्रिवः) मेघों के करनेवाले सूर्य्य के सदृश वर्त्तमान (अनानत) शत्रुओं के समीप में नम्रता से रहित (शचीपते) प्रजा के स्वामिन् ! आप (मायाः) कपटों को (वृह) काटो और (चित्) भी (जनानाम्) मनुष्यों की (दृळ्हानि) निश्चित सेनाओं को करके शत्रुओं का (वि) विशेष करके नाश करिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - वह राजा, आचार्य्य वा अध्यापक उत्तम होवे, जो छल आदि दोषों का निवारण करके मनुष्यों को धर्म्म के आचरण से युक्त निरन्तर करे ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं निवार्य किं प्राप्नुयिरित्याह ॥

अन्वय:

हे अद्रिवोऽनानत शचीपते ! त्वं माया वृह चिदपि जनानां दृळ्हानि सैन्यानि सम्पाद्य शत्रून् वि वृह ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वि) (दृळ्हानि) निश्चितानि (चित्) अपि (अद्रिवः) मेघकरसूर्यवद्वर्त्तमान (जनानाम्) मनुष्याणाम् (शचीपते) प्रजास्वामिन् (वृह) उच्छिन्धि (मायाः) कपटानि (अनानत) शत्रूणां समीपे नम्रतारहित ॥९॥
भावार्थभाषाः - स एव राजाऽऽचार्योऽध्यापको वोत्तमः स्याद्यो छलादिदोषान्निवार्य्य मनुष्यान् धर्माचारान्त्सततं कुर्यात् ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो छळ इत्यादी दोषांचे निवारण करून माणसांना धार्मिक आचरणात प्रवृत्त करतो तोच राजा उत्तम आचार्य किंवा अध्यापक असतो. ॥ ९ ॥