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सखा॑यो॒ ब्रह्म॑वाह॒सेऽर्च॑त॒ प्र च॑ गायत। स हि नः॒ प्रम॑तिर्म॒ही ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sakhāyo brahmavāhase rcata pra ca gāyata | sa hi naḥ pramatir mahī ||

पद पाठ

सखा॑यः। ब्रह्म॑ऽवाहसे। अर्च॑त। प्र। च॒। गा॒य॒त॒। सः। हि। नः॒। प्रऽम॑तिः। म॒ही ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:45» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:21» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को किसका सत्कार करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सखायः) मित्रो ! आप लोग (ब्रह्मवाहसे) वेद और ईश्वर के विज्ञान प्राप्त कराने के लिये जिसका (प्र, अर्चत) अत्यन्त सत्कार करो (गायत, च) और प्रशंसा करो जिससे (नः) हम लोगों के लिये (प्रमतिः) अच्छी बुद्धि (मही) और बड़ी वाणी दी जाती है (सः, हि) वही जगदीश्वर और विद्वान् हम लोगों से उपासना और सेवा करने योग्य है ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! आप लोग परस्पर मित्र होकर परमेश्वर और सब के कल्याण के लिये प्रवृत्त यथार्थवक्ता तथा उपदेशक का सदा ही सत्कार करो, जिससे हम लोगों को उत्तम बुद्धि और वाणी प्राप्त होवे ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः कः सत्कर्त्तव्य इत्याह ॥

अन्वय:

हे सखायो यूयं ब्रह्मवाहसे यं प्रार्चत गायत च येन नः प्रमतिर्मही च दीयते स हि परमात्मा विद्वांश्चाऽस्माभिरुपास्यः सेवनीयश्चास्ति ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सखायः) सुहृदः (ब्रह्मवाहसे) वेदेश्वरविज्ञानप्रापणाय (अर्चत) सत्कुरुत (प्र) प्रकर्षे (च) (गायत) प्रशंसत (सः) जगदीश्वरः (हि) यतः (नः) अस्मभ्यम् (प्रमतिः) प्रकृष्टा प्रज्ञा (मही) महती वाक् ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यूयं परस्परं सुहृदो भूत्वा परमेश्वरं सर्वस्य कल्याणाय प्रवर्त्तमानमाप्तमुपदेशकं च सदैव सत्कुरुत यतोऽस्मानुत्तमा प्रज्ञा वाक् चाप्नुयात् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! तुम्ही परस्पर सुहृद बनून परमेश्वर व सर्वांचे कल्याण करण्यास प्रवृत्त असलेल्या विद्वान उपदेशकाचा सदैव सत्कार करा. ज्यामुळे आम्हाला उत्तम बुद्धी व वाणी प्राप्त व्हावी. ॥ ४ ॥