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पु॒रू॒तमं॑ पुरू॒णां स्तो॑तॄ॒णां विवा॑चि। वाजे॑भिर्वाजय॒ताम् ॥२९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

purūtamam purūṇāṁ stotṝṇāṁ vivāci | vājebhir vājayatām ||

पद पाठ

पु॒रु॒ऽतम॑म्। पु॒रू॒णाम्। स्तो॒तॄ॒णाम्। विऽवा॑चि। वाजे॑भिः। वा॒ज॒ऽय॒ताम् ॥२९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:45» मन्त्र:29 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:26» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:29


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कौन उत्तम है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो वाणियाँ (वाजेभिः) अन्न आदिकों से (वाजयताम्) प्राप्त करानेवाले (पुरूणाम्) बहुत (स्तोतॄणाम्) विद्वानों के (विवाचि) अनेक प्रकार की सत्य अर्थ को प्रकाश करनेवाली वाणियाँ जिसमें उस व्यवहार में (पुरूतमम्) अतिशय बहुत विद्यायुक्त व्यवहार को प्राप्त होती हैं, वे हम लोगों को निश्चित प्राप्त हों ॥२९॥
भावार्थभाषाः - वे ही बहुतों में उत्तम हैं जो विद्या, विनय और धर्म्माचरण को प्राप्त हुए हैं ॥२९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः क उत्तम इत्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! या गिरो वाजेभिर्वाजयतां पुरूणां स्तोतॄणां विवाचि पुरूतमं प्राप्नुवन्ति ता अस्मानपि प्राप्नुवन्तु ॥२९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरूतमम्) अतिशयेन बहुविद्यम् (पुरूणाम्) बहूनाम् (स्तोतॄणाम्) विदुषाम् (विवाचि) विविधार्थसत्यार्थप्रकाशिका वाचो यस्मिन् व्यवहारे (वाजेभिः) अन्नादिभिः (वाजयताम्) प्रापयताम् ॥२९॥
भावार्थभाषाः - त एव बहुषूत्तमाः सन्ति ये विद्याविनयधर्म्माचरणं प्राप्ताः सन्ति ॥२९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्या, विनय व धर्माचरणाने वागतात तेच अत्यंत उत्तम असतात. ॥ २९ ॥