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इ॒मा उ॑ त्वा सु॒तेसु॑ते॒ नक्ष॑न्ते गिर्वणो॒ गिरः॑। व॒त्सं गावो॒ न धे॒नवः॑ ॥२८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

imā u tvā sute-sute nakṣante girvaṇo giraḥ | vatsaṁ gāvo na dhenavaḥ ||

पद पाठ

इ॒माः। ऊँ॒ इति॑। त्वा॒। सु॒तेऽसु॑ते। नक्ष॑न्ते। गि॒र्व॒णः॒। गिरः॑। व॒त्सम्। गावः॑। न। धे॒नवः॑ ॥२८॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:45» मन्त्र:28 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:26» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:28


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब किसके लिये कहाँ प्राप्त होवे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (गिर्वणः) वाणियों से प्रशंसा करने योग्य ! (सुतेसुते) उत्पन्न-उत्पन्न हुए इस संसार में (इमाः) ये (गिरः) उत्तम प्रकार शिक्षित वाणियाँ (वत्सम्) बछड़े को (धेनवः) दुग्ध की देनेवाली (गावः) गौवें (न) जैसे वैसे (त्वा) आपको (नक्षन्ते) व्याप्त हों, वे (उ) और हम लोगों को भी प्राप्त हों ॥२८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो श्रेष्ठ आचरण करनेवाले हैं, उनको गौ जैसे बछड़े को, वैसे सम्पूर्ण विद्या और वाणियाँ प्राप्त होती हैं ॥२८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ कस्मै क्व किं प्राप्नुयादित्याह ॥

अन्वय:

हे गिर्वण ! सुतेसुतेऽस्मिञ्जगतीमा गिरो वत्सं धेनवो गावो न त्वा नक्षन्ते ता उ अस्मानपि प्राप्नुवन्तु ॥२८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इमाः) (उ) (त्वा) त्वाम् (सुतेसुते) उत्पन्न उत्पन्ने जगति (नक्षन्ते) व्याप्नुवन्तु प्राप्नुवन्तु। (गिर्वणः) गीर्भिः प्रशंसनीय (गिरः) सुशिक्षिता वाचः (वत्सम्) (गावः) (न) इव (धेनवः) दुग्धदात्र्यः ॥२८॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये शुभाचरणाः सन्ति तान् गौः स्ववत्समिव सर्वा विद्या वाचः प्राप्नुवन्तु ॥२८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. गाय जशी वासराला दूध देते तसे जे श्रेष्ठ आचरण करणारे असतात त्यांना संपूर्ण विद्या व वाणी प्राप्त होते. ॥ २८ ॥