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स म॑न्दस्वा॒ ह्यन्ध॑सो॒ राध॑से त॒न्वा॑ म॒हे। न स्तो॒तारं॑ नि॒दे क॑रः ॥२७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa mandasvā hy andhaso rādhase tanvā mahe | na stotāraṁ nide karaḥ ||

पद पाठ

सः। म॒न्द॒स्व॒। हि। अन्ध॑सः। राध॑से। त॒न्वा॑। म॒हे। न। स्तो॒तार॑म्। नि॒दे। क॒रः॒ ॥२७॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:45» मन्त्र:27 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:26» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:27


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा कैसा होवे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (हि) जिससे आप (तन्वा) शरीर से (महे) बड़े (राधसे) धन के लिये (अन्धसः) अन्न आदि से (मन्दस्वा) आनन्दित हूजिये वा आनन्दित करिये और (निदे) निन्दा करनेवाले के लिये (स्तोतारम्) स्तुति करनेवाले को (न) नहीं (करः) करिये इससे (सः) वह आप जनों को प्रिय हैं ॥२७॥
भावार्थभाषाः - हे राजा और प्रजाजनो ! आप लोग अन्न आदि से सब को आनन्दित करिये और निन्दा न करने योग्यों की मत निन्दा करिये तथा ऐश्वर्य्य की वृद्धि के लिये निरन्तर प्रयत्न करिये ॥२७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स राजा कीदृग्भवेदित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! हि त्वं तन्वा महे राधसेऽन्धसो मन्दस्वा निदे स्तोतारं न करस्तस्मात् स भवाञ्जनप्रियोऽस्ति ॥२७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (मन्दस्वा) आनन्दाऽऽनन्दय वा। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (हि) यतः (अन्धसः) अन्नादेः (राधसे) धनाय (तन्वा) शरीरेण (महे) महते (न) निषेधे (स्तोतारम्) (निदे) निन्दाकर्त्रे (करः) कुर्याः ॥२७॥
भावार्थभाषाः - हे राजप्रजाजना ! यूयमन्नादिना सर्वानान्दयत। अनिन्द्यान्मा निन्दत। ऐश्वर्यवृद्धये सततं प्रयतध्वम् ॥२७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा व प्रजाजनांनो ! तुम्ही अन्न इत्यादींनी सर्वांना आनंदित करा. चांगल्या लोकांची निंदा करू नका व ऐश्वर्याच्या वृद्धीसाठी निरंतर प्रयत्न करा. ॥ २७ ॥