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आ त्वा॒ हर॑यो॒ वृष॑णो युजा॒ना वृष॑रथासो॒ वृष॑रश्म॒योऽत्याः॑। अ॒स्म॒त्राञ्चो॒ वृष॑णो वज्र॒वाहो॒ वृष्णे॒ मदा॑य सु॒युजो॑ वहन्तु ॥१९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā tvā harayo vṛṣaṇo yujānā vṛṣarathāso vṛṣaraśmayo tyāḥ | asmatrāñco vṛṣaṇo vajravāho vṛṣṇe madāya suyujo vahantu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। त्वा॒। हर॑यः। वृष॑णः। यु॒जा॒नाः। वृष॑ऽरथासः। वृष॑ऽरश्मयः। अत्याः॑। अ॒स्म॒त्राञ्चः॑। वृष॑णः। व॒ज्र॒ऽवाहः॑। वृष्णे॑। मदा॑य। सु॒ऽयुजः॑। व॒ह॒न्तु॒ ॥१९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:44» मन्त्र:19 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:19» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:19


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा और मन्त्रीजन कैसे होवें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त राजन् ! जैसे (वृषणः) बलयुक्त (युजानाः) जिनके सावधान आत्मा और (वृषरथासः) बलयुक्त सेना के अङ्ग जिनके वे (वृषरश्मयः) किरणों के सदृश विजय सुख के वर्षानेवाले तेजस्वी (अत्याः) सम्पूर्ण श्रेष्ठगुण और कर्म्मों में व्यापी (अस्मत्राञ्च) शत्रुओं से हम लोगों की रक्षा करनेवालों को प्राप्त होने और (वृषणः) शत्रुशक्ति के रोकनेवाले (वज्रवाहः) शस्त्र और अस्त्रों की विद्या को धारण करने तथा (सुयुजः) उत्तम प्रकार युक्त होने वा युक्त करानेवाले (हरयः) उत्तम प्रकार शिक्षित घोड़ों के सदृश मनुष्य (वृष्णे) बलकारक (मदाय) आनन्द के लिये (त्वा) आपको (वहन्तु) प्राप्त हों वा प्राप्त करावें, वैसे इनको आप प्रीति से (आ) प्राप्त हूजिये ॥१९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। राजा को चाहिये कि उत्तम प्रकार परीक्षा करके उत्तम गुण, कर्म्म और स्वभाववाले मनुष्यों को राज्य कर्म्म के अधिकारों में नियुक्त करे तथा आप भी श्रेष्ठ गुण, कर्म्म और स्वभाववाला होवे ॥१९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजामात्याः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र राजन् ! यथा वृषणो युजाना वृषरथासो वृषरश्मयोऽत्या अस्मत्राञ्चो वृषणो वज्रवाहः सुयुजो हरयो वृष्णे मदाय त्वा वहन्तु तथैतांस्त्वं प्रीत्याऽऽवह ॥१९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (त्वा) त्वाम् (हरयः) सुशिक्षिता अश्वा इव मनुष्याः (वृषणः) बलिष्ठाः (युजानाः) समाहितात्मानः (वृषरथासः) वृषा बलयुक्ता रथाः सेनाङ्गानि येषां ते (वृषरश्मयः) रश्मय इव विजयसुखवर्षकास्तेजस्विनः (अत्याः) सकलशुभगुणकर्मव्यापिनः (अस्मत्राञ्च) ये शत्रुभ्योऽस्माँस्त्रायन्ते तानञ्चन्ति प्राप्नुवन्ति ते (वज्रवाहः) शस्त्रास्त्रविद्यावोढारः (वृष्णे) बलकराय (मदाय) आनन्दाय (सुयुजः) ये सुष्ठु युञ्जते योजयन्ति वा (वहन्तु) प्राप्नुवन्तु प्रापयन्तु वा ॥१९॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। राज्ञा सुपरीक्ष्योत्तमगुणकर्मस्वभावा जना राज्यकर्माधिकारेषु नियोजनीयाः स्वयमपि शभगुणकर्मस्वभावः स्यात् ॥१९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. राजाने उत्तम प्रकारे परीक्षा करून उत्तम गुण, कर्म, स्वभावाच्या माणसांना राजकार्याच्या पदावर नियुक्त करावे व स्वतःही श्रेष्ठ गुण, कर्म, स्वभावयुक्त बनावे. ॥ १९ ॥