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यस्य॑ मन्दा॒नो अन्ध॑सो॒ माघो॑नं दधि॒षे शवः॑। अ॒यं स सोम॑ इन्द्र ते सु॒तः पिब॑ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yasya mandāno andhaso māghonaṁ dadhiṣe śavaḥ | ayaṁ sa soma indra te sutaḥ piba ||

पद पाठ

यस्य॑। म॒न्दा॒नः। अन्ध॑सः। माघो॑नम्। द॒धि॒षे। शवः॑। अ॒यम्। सः। सोमः॑। इ॒न्द्र॒। ते॒। सु॒तः। पिब॑ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:43» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:15» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) वैद्यराज ! (यस्य) जिस (अन्धसः) अन्न आदि की (मन्दानः) स्तुति करते हुए आप (माघोनम्) बहुधनयुक्त को और (शवः) बल का हेतु उसको (दधिषे) धारण करते हो (सः) वह (अयम्) यह (सोमः) ऐश्वर्य करनेवाला रस (ते) आपके लिये (सुतः) उत्पन्न किया गया उसको आप (पिब) पीजिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिससे बल, बुद्धि और सुख बढ़े, उसी रस और अन्न का निरन्तर सेवन करो ॥४॥ इस सूक्त में इन्द्र, सोम और विद्वान् के गुणवर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जानी चाहिये ॥ यह ऋग्वेद के छठे मण्डल में तृतीय अनुवाक, तेंतीसवाँ सूक्त और चौथे अष्टक में सातवें अध्याय में पन्द्रहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते किं कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! यस्यान्धसो मन्दानस्त्वं माघोनं शवश्च दधिषे सोऽयं सोमस्ते सुतस्तं पिब ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) (मन्दानः) स्तुवन् आनन्दन् (अन्धसः) अन्नादेः (माघोनम्) बहुधनवन्तम् (दधिषे) धरसि (शवः) बलहेतुम् (अयम्) (सः) (सोमः) ऐश्वर्यकरो रसः (इन्द्र) वैद्यराज (ते) तुभ्यम् (सुतः) (पिब) ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! येन बलबुद्धिसुखानि वर्धेरंस्तमेव रसमन्नं च सततं सेवध्वमिति ॥४॥ अत्रेन्द्रसोमविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यृग्वेदे षष्ठे मण्डले तृतीयोऽनुवाकस्त्रिचत्वारिंशत्तमं सूक्तं चतुर्थेऽष्टके सप्तमेऽध्याये पञ्चदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्यामुळे बल, बुद्धी व सुख वाढेल त्याच रसाचे व अन्नाचे सतत ग्रहण करा. ॥ ४ ॥