वांछित मन्त्र चुनें

यस्य॒ गा अ॒न्तरश्म॑नो॒ मदे॑ दृ॒ळ्हा अ॒वासृ॑जः। अ॒यं स सोम॑ इन्द्र ते सु॒तः पिब॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yasya gā antar aśmano made dṛḻhā avāsṛjaḥ | ayaṁ sa soma indra te sutaḥ piba ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यस्य॑। गाः। अ॒न्तः। अश्म॑नः। मदे॑। दृ॒ळ्हाः। अ॒व॒ऽअसृ॑जः। अ॒यम्। सः। सोमः॑। इ॒न्द्र॒। ते॒। सु॒तः। पिब॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:43» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:15» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) सम्पूर्ण रोगों के नाश करनेवाले (यस्य) जिस (अश्मनः) मेघ के (अन्तः) मध्य में (दृळ्हाः) दृढ़ (गाः) किरणों को (मदे) आनन्द के लिये (अवासृजः) उत्पन्न करता है उसके सम्बन्ध से (सः) वह (अयम्) यह (सोमः) रोगों को नाश करनेवाला ओषधियों का रस (ते) आपके लिये (सुतः) निर्म्माण किया गया उसको आप (पिब) पीजिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! जिनके परमाणु मेघमण्डल में भी वर्त्तमान हैं, ओषधियों से उसका निर्म्माण वैद्यक रीति से कर और उसका सेवन करके रोगरहित हूजिये ॥३॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! यस्याश्मनोऽन्तर्दृळ्हा गा मदेऽवासृजस्तस्य सम्बन्धेन सोऽयं सोमस्ते सुतस्तं त्वं पिब ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) (गाः) किरणान् (अन्तः) मध्ये (अश्मनः) मेघस्य (मदे) आनन्दाय (दृळ्हाः) ध्रुवान् (अवासृजः) अवसृजति (अयम्) (सः) (सोमः) रोगनाशकौषधिरसः (इन्द्र) सर्वरोगविदारक (ते) तुभ्यम् (सुतः) निर्मितः (पिब) ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! यस्य परमाणवो मेघमण्डलेऽपि स्थिता ओषधिभ्यस्तस्य निष्पादनं वैद्यकरीत्या कृत्वा तं सेवित्वाऽरोगा भवत ॥३॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो ! ज्यांचे परमाणू मेघमंडलातही स्थित आहेत, त्यापासून वैद्यकशास्त्रानुसार औषधी निर्माण करून ती घ्या व रोगरहित व्हा. ॥ ३ ॥