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यस्य॒ त्यच्छम्ब॑रं॒ मदे॒ दिवो॑दासाय र॒न्धयः॑। अ॒यं स सोम॑ इन्द्र ते सु॒तः पिब॑ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yasya tyac chambaram made divodāsāya randhayaḥ | ayaṁ sa soma indra te sutaḥ piba ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यस्य॑। त्यत्। शम्ब॑रम्। मदे॑। दिवः॑ऽदासाय। र॒न्धयः॑। अ॒यम्। सः। सोमः॑। इ॒न्द्र॒। ते॒। सु॒तः। पिब॑ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:43» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:15» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब चार ऋचावाले तैंतालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के प्राप्त करानेवाले (सः) वह (अयम्) यह (सोमः) बुद्धि और बल का बढ़ानेवाला रस (ते) आपके लिये (सुतः) उत्पन्न किया गया है उसका आप (पिब) पान करिये और (शम्बरम्) मेघ को सूर्य्य जैसे वैसे (मदे) आनन्दकारक (दिवोदासाय) विज्ञान के देनेवाले के लिये, दुःख के देनेवाले दुष्ट का (रन्धयः) नाश करिये और (यस्य) जिसकी कुकर्म के अनुष्ठान में इच्छा होवे (त्यत्) उसका नाश करिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजा आदि जनो ! आप धार्म्मिक जनों को पीड़ा देनेवाले मनुष्यों को यथावत् दण्ड दीजिये और वैद्यकशास्त्र में कही हुई रीति से बड़ी ओषधियों के रस को निकाल कर उसका सेवन कर रोगरहित होकर सम्पूर्ण प्रजाओं को रोगरहित करिये ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! सोऽयं सोमस्ते सुतोऽस्ति तं त्वं पिब। शम्बरं सूर्य्य इव मदे दिवोदासाय दुःखप्रदं दुष्टं रन्धयः। यस्य कुकर्मानुष्ठान इच्छा भवेत् त्यत् तं रन्धयः ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) (त्यत्) तत् (शम्बरम्) मेघमिव (मदे) आनन्दकाय (दिवोदासाय) विज्ञानप्रदाय (रन्धयः) हिंसय (अयम्) (सः) (सोमः) बुद्धिबलवर्धको रसः (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रापक (ते) तुभ्यम् (सुतः) निष्पादितः (पिब) ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजादयो जना ! यूयं धार्मिकाणां पीडकान् जनान् यथावद्दण्डयत वैद्यकशास्त्रोक्तरीत्या महौषधिरसं निष्पाद्य संसेव्यारोगा भूत्वा सर्वाः प्रजा अरोगाः कुरुत ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इंद्र, सोम व विद्वान यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा इत्यादींनो ! धार्मिक लोकांना त्रास देणाऱ्यांना तुम्ही यथावत् दंड द्या व वैद्यकशास्त्रानुसार महौषधींचा रस काढून, प्राशन करून रोगरहित बना व संपूर्ण प्रजेला रोगरहित करा. ॥ १ ॥