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अ॒स्माअ॑स्मा॒ इदन्ध॒सोऽध्व॑र्यो॒ प्र भ॑रा सु॒तम्। कु॒वित्स॑मस्य॒ जेन्य॑स्य॒ शर्ध॑तो॒ऽभिश॑स्तेरव॒स्पर॑त् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asmā-asmā id andhaso dhvaryo pra bharā sutam | kuvit samasya jenyasya śardhato bhiśaster avasparat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अस्मैऽअ॑स्मै। इत्। अन्ध॑सः। अध्व॑र्यो॒ इति॑। प्र। भ॒र॒। सु॒तम्। कु॒वित्। स॒म॒स्य॒। जेन्य॑स्य। शर्ध॑तः। अ॒भिऽश॑स्तेः। अ॒व॒ऽस्पर॑त् ॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:42» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:14» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को कैसा वर्त्ताव करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अध्वर्य्यो) नहीं हिंसा करनेवाले आप ! (अस्माअस्मै) इस इसके लिये (अन्धसः) अन्न आदि के (समस्य) तुल्य (जेन्यस्य) जीतने योग्य (शर्धतः) बल के और (अमिशस्तेः) चारों ओर से प्रशंसित (कुवित्) महान् (सुतम्) उत्पन्न किये गये को (प्र, भरा) धारण करिये इससे (इत्) ही हम लोगों का आप (अवस्परत्) पालन करते हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् सब के लिये सम्पूर्ण उत्तम पदार्थों को समर्पित करते हैं और जितने सामर्थ्य का धारण करते हैं, उतना सब औरों के रक्षण के लिये करते हैं, उन सब को भाग्यशाली गिनना चाहिये ॥४॥ इस सूक्त में इन्द्र, राजा, विद्वान् और प्रजा के कृत्य का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह बयालीसवाँ सूक्त और चौदहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः कथं वर्तितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे अध्वर्यो ! त्वमस्माअस्मा अन्धसः समस्य जेन्यस्य शर्धतोऽभिशस्तेः कुवित्सुतं प्र भरा तेनेदस्मान् भवानवस्परत् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्माअस्मै) (इत्) एव (अन्धसः) अन्नादेः (अध्वर्यो) अहिंसक (प्र) (भरा) धर। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (सुतम्) निष्पादितम् (कुवित्) महत् (समस्य) तुल्यस्य (जेन्यस्य) जेतुं योग्यस्य (शर्धतः) बलस्य (अभिशस्तेः) अभितः प्रशंसितस्य (अवस्परत्) पालयति ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसः सर्वार्थं सर्वानुत्तमान् पदार्थान्त्समर्पयन्ति यावत्सामर्थ्यं धरन्ति तावत्सर्वं परेषां रक्षणाय कुर्वन्ति ते सर्वदा भाग्यशालिनो गणनीया इति ॥४॥ अत्रेन्द्रराजविद्वत्प्रजाकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति द्विचत्वारिंशत्तमं सूक्तं चतुर्दशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान सर्वांना संपूर्ण उत्तम पदार्थ देतात व त्यांच्यात जितके सामर्थ्य असते ते सर्वांच्या रक्षणासाठी खर्च करतात त्यांची भाग्यवान लोकांत गणना होते. ॥ ४ ॥