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त्वद्भि॒येन्द्र॒ पार्थि॑वानि॒ विश्वाच्यु॑ता चिच्च्यावयन्ते॒ रजां॑सि। द्यावा॒क्षामा॒ पर्व॑तासो॒ वना॑नि॒ विश्वं॑ दृ॒ळ्हं भ॑यते॒ अज्म॒न्ना ते॑ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvad bhiyendra pārthivāni viśvācyutā cic cyāvayante rajāṁsi | dyāvākṣāmā parvatāso vanāni viśvaṁ dṛḻham bhayate ajmann ā te ||

पद पाठ

त्वत्। भि॒या। इ॒न्द्र॒। पार्थि॑वानि। विश्वा॑। अच्यु॑ता। चि॒त्। च्य॒व॒य॒न्ते॒। रजां॑सि। द्यावा॒क्षामा॑। पर्व॑तासः। वना॑नि। विश्व॑म्। दृ॒ळ्हम्। भ॒य॒ते॒। अज्म॑न्। आ। ते॒ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:31» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:3» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या जानें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) बिजुली के सदृश वर्त्तमान ! (ते) आपके (भिया) भय से (विश्वा) सम्पूर्ण (अच्युता) नाश से रहित (पार्थिवानि) पृथिवी में विदित जन्तु विशेष (रजांसि) लोकों को (चित्) निश्चित (च्यावयन्ते) चलाते हैं तथा जैसे सूर्य्य से (द्यावाक्षामा) अन्तरिक्ष और पृथिवी तथा (पर्वतासः) पर्वत और (वनानि) जंगल (विश्वम्) सम्पूर्ण जगत् को चलाते हैं, वैसे (त्वत्) आपसे (दृळ्हम्) दृढ़ विश्व (अज्मन्) मार्ग में (आ, भयते) अच्छे प्रकार भय करता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे न्यायकारी वीरपुरुष से कायर जन डरते हैं, वैसे ही बिजुली से सब प्राणी डरते हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं जानीयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! ते भिया विश्वाच्युता पार्थिवानि रजांसि चित् च्यावयन्ते यथा सूर्येण द्यावाक्षामा पर्वतासो वनानि विश्वञ्च तथा त्वद्दृळ्हमज्मन्नाऽऽभयते ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वत्) (भिया) (इन्द्र) विद्युदिव वर्त्तमान (पार्थिवानि) पृथिव्यां विदितानां जन्तुविशेषाणि (विश्वा) सर्वाणि (अच्युता) क्षयरहितानि (चित्) (च्यावयन्ते) गमयन्ति (रजांसि) लोकान् (द्यावाक्षामा) द्यावापृथिव्यौ (पर्वतासः) शैलाः (वनानि) जङ्गलानि (विश्वम्) सर्वं जगत् (दृळ्हम्) (भयते) (अज्मन्) मार्गे (आ) (ते) तव ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यथा न्यायकारिणो वीरपुरुषात् कातरा बिभ्यति तथैव विद्युतः सर्वे प्राणिनो बिभ्यति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जसे न्यायी वीर पुरुषाला भित्रे लोक घाबरतात तसेच विद्युतला सर्व प्राणी घाबरतात. ॥ २ ॥