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यस्य॒ गावा॑वरु॒षा सू॑यव॒स्यू अ॒न्तरू॒ षु चर॑तो॒ रेरि॑हाणा। स सृञ्ज॑याय तु॒र्वशं॒ परा॑दाद्वृ॒चीव॑तो दैववा॒ताय॒ शिक्ष॑न् ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yasya gāvāv aruṣā sūyavasyū antar ū ṣu carato rerihāṇā | sa sṛñjayāya turvaśam parādād vṛcīvato daivavātāya śikṣan ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यस्य॑। गावौ॑। अ॒रु॒षा। सु॒य॒व॒स्यू इति॑ सु॒ऽय॒व॒स्यू। अ॒न्तः। ऊँ॒ इति॑। सु। चर॑तः। रेरि॑हाणा। सः। सृञ्ज॑याय। तु॒र्वश॑म्। परा॑। अ॒दा॒त्। वृ॒चीव॑तः। दै॒व॒ऽवा॒ताय॑। शिक्ष॑न् ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:27» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:24» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! (यस्य) जिसके (अरुषा) चारों ओर से रक्त (सूयवस्यू) अपने उत्तम यवों की इच्छा करती और (रेरिहाणा) आस्वादन करती हुई (गावौ) किरणों के सदृश सेना और राजनीति प्रजा के (अन्तः) मध्य में (सु, चरतः) उत्तम प्रकार चलती हैं (सः) वह (दैववाताय) श्रेष्ठ वायु के विज्ञान और (सृञ्जयाय) उत्पादन के लिये (वृचीवतः) छेदनवाले के (तुर्वशम्) मनुष्य को (शिक्षन्) शिक्षा देता (उ) और दुर्गुण को (परा, अदात्) दूर करे और अखण्डित राज्य को प्राप्त होवे ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो राजा नीति और सेना की वृद्धि करता है, वह अखण्डित राज्य को प्राप्त होता है ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजा किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! यस्याऽरुषा सूयवस्यू रेरिहाणा गावाविव सेनानीती प्रजाया अन्तः सु चरतः स दैववाताय सृञ्जयाय वृचीवतस्तुर्वशं च शिक्षन्नु दुरितं पराऽदादखण्डितं राज्यं प्राप्नुयात् ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) (गावौ) गावौ किरणाविव सेनाराजनीती (अरुषा) आरक्ते (सूयवस्यू) आत्मनस्सुयवसानिच्छू (अन्तः) मध्ये (उ) (सु) (चरतः) (रेरिहाणा) आस्वादयन्त्यौ (सः) सः (सृञ्जयाय) उत्पादनाय (तुर्वशम्) मनुष्यम् (परा) (अदात्) दूरी कुर्यात् (वृचीवतः) छेदनवतः (दैववाताय) दिव्यवायुविज्ञानाय (शिक्षन्) ॥७॥
भावार्थभाषाः - यो राजा नीतिसेने उन्नयति सोऽखण्डितं राज्यं प्राप्नोति ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा नीती व सेना यांची वृद्धी करतो तो अखंडित राज्य करतो. ॥ ७ ॥