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स प॑त्यत उ॒भयो॑र्नृ॒म्णम॒योर्यदी॑ वे॒धसः॑ समि॒थे हव॑न्ते। वृ॒त्रे वा॑ म॒हो नृ॒वति॒ क्षये॑ वा॒ व्यच॑स्वन्ता॒ यदि॑ वितन्त॒सैते॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa patyata ubhayor nṛmṇam ayor yadī vedhasaḥ samithe havante | vṛtre vā maho nṛvati kṣaye vā vyacasvantā yadi vitantasaite ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। प॒त्य॒ते॒। उ॒भयोः॑। नृ॒म्णम्। अ॒योः। यदि॑। वे॒धसः॑। स॒म्ऽइ॒थे। हव॑न्ते। वृ॒त्रे। वा॒। म॒हः। नृ॒ऽवति॑। क्षये॑। वा॒। व्यच॑स्वन्ता। यदि॑। वि॒त॒न्त॒सैते॒ इति॑ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:25» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:20» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! जो आप (उभयोः) दोनों अर्थात् प्रजा और सेना के मध्य में (पत्यते) स्वामी के सदृश आचरण करते हो (सः) वह आप (यदी) यदि (नृम्णम्) मनुष्य रमते हैं जिसमें उस धन को (अयोः) मिलावें वा अलग करें और शूरवीर (वृत्रे) धन (वा) वा (महः) बड़े (नृवति) प्रशंसायुक्त नर विद्यमान जिसमें उस (क्षये) गृह में (व्यचस्वन्ता) व्याप्त होनेवाले होते हुए (वितन्तसैते) अत्यन्त युद्ध करें तो दोनों अर्थात् प्रजा और सेना के मध्य में एक विजय को प्राप्त होवे और (यदि, वा) अथवा जो (वेधसः) बुद्धिमान् के (समिथे) सङ्ग्राम में (हवन्ते) स्पर्द्धा करते हैं, वे अवश्य विजय को प्राप्त होते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो राजा पक्षपात का त्याग करके शत्रु और मित्र का सत्य न्याय करता है और सब अधिकारों में धार्मिक, बुद्धिमानों जनों को रखता है और सब प्रकार से सेना में कुलीन, दृढ़ राजभक्तों को नियुक्त करता है, वही सर्वदा विजयी होता है ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्स राजा किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! यो भवानुभयोर्मध्ये पत्यते स त्वं यदी नृम्णमयोः शूरवीरो वृत्रे वा महो नृवति क्षये व्यचस्वन्ता सन्तौ वितन्तसैते तर्ह्युभयोर्मध्य इतरो विजयमाप्नुयात्। यदि वा ये वेधसः समिथे हवन्ते तेऽवश्यं विजयमाप्नुवन्ति ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (पत्यते) पतिरिवाचरति (उभयोः) द्वयोः प्रजासेनयोः (नृम्णम्) नरा रमन्ते यस्मिंस्तद्धनम् (अयोः) वियोजय संयोजय वा (यदी) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (वेधसः) मेधाविनः (समिथे) सङ्ग्रामे। समिथ इति सङ्ग्रामनामसु पठितम्। (निघं०२.१७) (हवन्ते) स्पर्द्धन्ते (वृत्रे) धने (वा) (महः) महति (नृवति) प्रशंसिता नरा विद्यन्ते यस्मिंस्तस्मिन् (क्षये) गृहे (वा) (व्यचस्वन्ता) व्याप्नुवन्तौ (यदि) (वितन्तसैते) भृशं युध्येताम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - यो राजा पक्षपातं विहाय शत्रुमित्रयोः सत्यं न्यायं करोति सर्वेष्वधिकारेषु धार्मिकान् धीमतो रक्षति सर्वथा सेनायां कुलीनान् दृढान् राजभक्तान्नियोजयति स एव सर्वदा विजयी भवति ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा भेदभाव न करता शत्रू व मित्रांचा खरा न्याय करतो व सर्व प्रकारे सेनेत कुलीन, दृढ राजभक्तांना नेमतो तोच विजयी होतो. ॥ ६ ॥