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या त॑ ऊ॒तिर॑व॒मा या प॑र॒मा या म॑ध्य॒मेन्द्र॑ शुष्मि॒न्नस्ति॑। ताभि॑रू॒ षु वृ॑त्र॒हत्ये॑ऽवीर्न ए॒भिश्च॒ वाजै॑र्म॒हान्न॑ उग्र ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yā ta ūtir avamā yā paramā yā madhyamendra śuṣminn asti | tābhir ū ṣu vṛtrahatye vīr na ebhiś ca vājair mahān na ugra ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

या। ते॒। ऊ॒तिः। अ॒व॒मा। या। प॒र॒मा। या। म॒ध्य॒मा। इ॒न्द्र॒। शु॒ष्मि॒न्। अस्ति॑। ताभिः॑। ऊँ॒ इति॑। सु। वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑। अ॒वीः॒। नः॒। ए॒भिः। च॒। वाजैः॑। म॒हान्। नः॒। उ॒ग्र॒ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:25» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:19» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब नव ऋचावाले पच्चीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अब राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शुष्मिन्) प्रशंसित बल से युक्त (उग्र) तेजस्विन् (इन्द्र) न्यायाधीश राजन् ! (ते) आपकी (या) जो (अवमा) निकृष्ट-खराब और (या) जो (मध्यमा) मध्यम और (या) जो (परमा) उत्तम (ऊतिः) रक्षा (अस्ति) है (ताभिः) उनसे (वृत्रहत्ये) मेघ के नाश के समान नाश जिसमें उस सङ्ग्राम में (नः) हम लोगों की (सु) उत्तम प्रकार (अवीः) रक्षा कीजिये (ऊ) और (एभिः) इन (वाजैः) वेग आदि उत्तम गुणों से (च) भी (महान्) बड़े हुए (नः) हम लोगों की रक्षा कीजिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! जो आप प्रजाओं की सब प्रकार से रक्षा करें तो प्रजा भी आपकी सब प्रकार से रक्षा करेगी ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजा किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे शुष्मिन्नुग्रेन्द्र ! ते याऽवमा या मध्यमा या परमोतिरस्ति ताभिर्वृत्रहत्ये नः स्ववीरू एभिर्वाजैश्च महान्त्सन्नोऽवीः ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (या) (ते) तव (ऊतिः) रक्षा (अवमा) निकृष्टा (या) (परमा) उत्कृष्टा (या) (मध्यमा) (इन्द्र) न्यायाधीश राजन् (शुष्मिन्) प्रशंसितबलयुक्त (अस्ति) (ताभिः) (ऊ) (सु) (वृत्रहत्ये) मेघस्य हत्येव हननं यस्मिन्त्सङ्ग्रामे (अवीः) रक्षेः (नः) अस्मान् (एभिः) (च) (वाजैः) वेगादिभिः शुभैर्गुणैः (महान्) (नः) अस्मान् (उग्र) तेजस्विन् ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । हे राजन् ! यदि त्वं प्रजाः सर्वथा रक्षेस्तर्हि प्रजा अपि त्वां सर्वतो रक्षिष्यन्ति ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इंद्र, शूरवीर, सेनापती व राजा यांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा ! तू प्रजेचे सर्व प्रकारे रक्षण केलेस तर प्रजाही सर्व प्रकार तुझे रक्षण करील. ॥ १ ॥