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न वी॒ळवे॒ नम॑ते॒ न स्थि॒राय॒ न शर्ध॑ते॒ दस्यु॑जूताय स्त॒वान्। अज्रा॒ इन्द्र॑स्य गि॒रय॑श्चिदृ॒ष्वा ग॑म्भी॒रे चि॑द्भवति गा॒धम॑स्मै ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

na vīḻave namate na sthirāya na śardhate dasyujūtāya stavān | ajrā indrasya girayaś cid ṛṣvā gambhīre cid bhavati gādham asmai ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न। वी॒ळवे॑। नम॑ते। न। स्थि॒राय॑। न। शर्ध॑ते। दस्यु॑ऽजूताय। स्त॒वान्। अज्राः॑। इन्द्र॑स्य। गि॒रयः॑। चित्। ऋ॒ष्वाः। ग॒म्भी॒रे। चि॒त्। भ॒व॒ति॒। गा॒धम्। अ॒स्मै॒ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:24» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:18» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! जो (दस्युजूताय) दुष्टों के सङ्ग के लिये (वीळवे) प्रशंसा करने योग्य बल के लिये (न) नहीं (नमते) नम्र होता (स्थिराय) स्थिर गम्भीर पुरुष के लिये (न) नहीं नम्र होता तथा (शर्द्धते) बल के लिये (न) नहीं (स्तवान्) स्तुति करे जिस (इन्द्रस्य) बिजुली के (ऋष्वाः) बड़े (अज्राः) फेंकनेवाले गुण (गिरयः) मेघों के (चित्) सदृश हैं (अस्मै) इसके लिये (गाधम्) ग्रहण किया परिमाण (गम्भीरे) गुरुपन में (चित्) भी (भवति) होता है, उसकी प्रशंसा करिये ॥८॥
भावार्थभाषाः - जैसे बिजुलियाँ अथाह गुणवाली हैं, वैसे ही परमात्मा के असङ्ख्य गुण हैं और जो परमात्मा और यथार्थवक्ता जनों को त्याग करके दुष्टों का संग करते हैं, वे सब काल में दुःखी होते हैं ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! यो दस्युजूताय वीळवे न नमते स्थिराय न नमते शर्धते न स्तवान् यस्यचिदिन्द्रस्य ऋष्वा अज्रा गिरयश्चिदस्मै गाधं गम्भीरे चिद् भवति तं प्रशंसत ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (न) निषेधे (वीळवे) प्रशंसनीयाय बलाय (नमते) (न) (स्थिराय) (न) (शर्धते) बलाय (दस्युजूताय) दुष्टसङ्गाय (स्तवान्) स्तुयात् (अज्राः) प्रक्षेप्तारः (इन्द्रस्य) विद्युतः (गिरयः) मेघाः (चित्) इव (ऋष्वाः) महान्तः (गम्भीरे) (चित्) अपि (भवति) (गाधम्) गृहीतपरिमाणम् (अस्मै) ॥८॥
भावार्थभाषाः - यथा विद्युतोऽगाधगुणाः सन्ति तथैव परमात्मनोऽसङ्ख्यगुणा वर्तन्ते ये तं परमात्मानमाप्ताँश्च विहाय दुष्टसङ्गतिं कुर्वन्ति ते सर्वदा दुःखिनो जायन्ते ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जशी विद्युत असंख्य गुणांनी युक्त असते तसेच परमात्म्याचे असंख्य गुण असतात. जे परमात्मा व विद्वान लोकांचा त्याग करून दुष्टांचा संग करतात ते सदैव दुःखी असतात. ॥ ८ ॥