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प्रोतये॒ वरु॑णं मि॒त्रमिन्द्रं॑ म॒रुतः॑ कृ॒ष्वाव॑से नो अ॒द्य। प्र पू॒षणं॒ विष्णु॑म॒ग्निं पुरं॑धिं सवि॒तार॒मोष॑धीः॒ पर्व॑तांश्च ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

protaye varuṇam mitram indram marutaḥ kṛṣvāvase no adya | pra pūṣaṇaṁ viṣṇum agnim puraṁdhiṁ savitāram oṣadhīḥ parvatām̐ś ca ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। ऊ॒तये॑। वरु॑णम्। मि॒त्रम्। इन्द्र॑म्। म॒रुतः॑। कृ॒ष्व॒। अव॑से। नः॒। अ॒द्य। प्र। पू॒षण॑म्। विष्णु॑म्। अ॒ग्निम्। पुर॑म्ऽधि॑म्। स॒वि॒तार॑म्। ओष॑धीः। पर्व॑तान्। च॒ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:21» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:12» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! आप (अद्य) इस समय (नः) हम लोगों को (ऊतये) रक्षा आदि के लिये (वरुणम्) उदान और (मित्रम्) प्राण वायु (इन्द्रम्) बिजुली को (मरुतः) पवनों को (प्र, कृष्व) अच्छे प्रकार करिये और (अवसे) ज्ञान आदि के लिये (पूषणम्) पुष्टि करनेवाले समान वायु (विष्णुम्) व्यापक व्यान और धनञ्जय वायु को वा हिरण्गर्भ परमात्मा को और (अग्निम्) प्रसिद्ध अग्नि (पुरन्धिम्) सब को धारण करनेवाले सूत्रात्मा (सवितारम्) सूर्यमण्डल (ओषधीः) सोमलता आदि ओषधियों और (पर्वतान्, च) मेघों वा पर्वतों को (प्र) अच्छे प्रकार करिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वान्जनो ! हम लोगों के लिये जैसे पृथिवी आदि पदार्थ सुखकारक होवें, वैसे करिये ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वँस्त्वमद्य न ऊतये वरुणं मित्रमिन्द्रं मरुतः प्र कृष्वावसे पूषणं विष्णुमग्निं पुरन्धिं सवितारमोषधीः पर्वतांश्च प्र कृष्व ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (ऊतये) रक्षाद्याय (वरुणम्) उदानम् (मित्रम्) प्राणम् (इन्द्रम्) विद्युतम् (मरुतः) वायून् (कृष्व) कुरु (अवसे) ज्ञानाद्याय (नः) अस्मान् (अद्य) (प्र) (पूषणम्) पोषकं समानम् (विष्णुम्) व्यापकं व्यानं धनञ्जयं वा हिरण्यगर्भम् (अग्निम्) प्रसिद्धम् (पुरन्धिम्) सर्वधरं सूत्रात्मानम् (सवितारम्) सूर्यमण्डलम् (ओषधीः) सोमाद्याः (पर्वतान्) मेघान् (च) शैलान् वा ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो जना ! अस्मदर्थं यथा पृथिव्यादयः पदार्थाः सुखकराः स्युस्तथा विधत्त ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वान लोकांनो ! आम्हाला पृथ्वी इत्यादी पदार्थ सुखकारक व्हावेत असे करा. ॥ ९ ॥