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इ॒दा हि ते॒ वेवि॑षतः पुरा॒जाः प्र॒त्नास॑ आ॒सुः पु॑रुकृ॒त्सखा॑यः। ये म॑ध्य॒मास॑ उ॒त नूत॑नास उ॒ताव॒मस्य॑ पुरुहूत बोधि ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

idā hi te veviṣataḥ purājāḥ pratnāsa āsuḥ purukṛt sakhāyaḥ | ye madhyamāsa uta nūtanāsa utāvamasya puruhūta bodhi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒दा। हि। ते॒। वेवि॑षतः। पु॒रा॒ऽजाः। प्र॒त्नासः॑। आ॒सुः। पु॒रु॒ऽकृ॒त्। सखा॑यः। ये। म॒ध्य॒मासः॑। उ॒त। नूत॑नासः। उ॒त। अ॒व॒मस्य॑। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। बो॒धि॒ ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:21» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:11» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पुरुहूत) बहुतों से प्रशंसा किये गये (पुरुकृत्) बहुतों को करनेवाले प्रतापयुक्त राजन् ! (ये) जो (हि) निश्चित (पुराजाः) पूर्व प्रकट हुए (प्रत्नासः) प्राचीन (मध्यमासः) मध्य अवस्था में हुए और (उत) भी (नूतनासः) नवीन (ते) आपके (सखायः) मित्र (आसुः) हैं उनको (इदा) इस समय तथा (वेविषतः) व्याप्त हुए और (उत) भी (अवमस्य) आधुनिक के सम्बन्धियों को आप (बोधि) चेतन करिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो आप लोगों के साथ मैत्री का आचरण करते हैं, वे वृद्ध, वृद्धतर तथा मध्यम और भी तुल्य अवस्थावाले होवें, उन में मित्रता की निश्चय रक्षा करिये, ऐसा होने पर निश्चित राज्य की वृद्धि होती है, यह ही पूर्वमन्त्र में कहे हुए प्रश्नों का उत्तर है ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह्

अन्वय:

हे पुरुहुत पुरुकृद् बहुकृदिन्द्र राजन् ! ये हि पुराजाः प्रत्नासो मध्यमास उत नूतनासस्ते सखाय आसुस्तानिदा वेविषत उतावमस्य सम्बन्धिनस्त्वं बोधि ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इदा) इदानीम् (हि) (ते) तव (वेविषतः) व्याप्नुवतः (पुराजाः) ये पूर्वं जाता (प्रत्नासः) प्राचीनाः (आसुः) सन्ति (पुरुकृत्) बहुकृत् (सखायः) सुहृदः (ये) (मध्यमासः) मध्ये भवाः (उत) अपि (नूतनासः) नवीनाः (उत) (अवमस्य) अर्वाचीनस्य (पुरुहूत) बहुभिः कृतप्रशंस (बोधि) बोधय ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! ये युष्माभिः सह मैत्रीमाचरन्ति ते वृद्धा वृद्धतरा मध्यमा उतापि तुल्यवयसः स्युस्तेषु सख्यं ध्रुवं रक्षेयुरेवं सति ध्रुवो राज्याभ्युदयो भवति। इदमेव पूर्वमन्त्रप्रश्नानामुत्तरम् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जे तुमच्याबरोबर मैत्री करतात ते वृद्ध, वृद्धतर, मध्यम व तुल्य अवस्थायुक्त असावेत. त्यांच्याबरोबर निश्चयाने मैत्री करा. असे करण्याने राज्याची निश्चित वृद्धी होते. हा मंत्र पूर्व मंत्रात विचारलेल्या प्रश्नांचे उत्तर आहे. ॥ ५ ॥