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यस्ता च॒कार॒ स कुह॑ स्वि॒दिन्द्रः॒ कमा जनं॑ चरति॒ कासु॑ वि॒क्षु। कस्ते॑ य॒ज्ञो मन॑से॒ शं वरा॑य॒ को अ॒र्क इ॑न्द्र कत॒मः स होता॑ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yas tā cakāra sa kuha svid indraḥ kam ā janaṁ carati kāsu vikṣu | kas te yajño manase śaṁ varāya ko arka indra katamaḥ sa hotā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। ता। च॒कार॑। सः। कुह॑। स्वि॒त्। इन्द्रः॑। कम्। आ। जन॑म्। च॒र॒ति॒। कासु॑। वि॒क्षु। कः। ते॒। य॒ज्ञः। मन॑से। शम्। वरा॑य। कः। अ॒र्कः। इ॒न्द्र॒। क॒त॒मः। सः। होता॑ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:21» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:11» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को विद्वानों के प्रति क्या-क्या पूँछना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) दुःखविदारक विद्वान् ! (यः) जो (इन्द्रः) अत्यन्त ऐश्वर्य का करनेवाला (कुह) (स्वित्) कहीं (ता) उनको (चकार) करता है और (कासु) किन (विक्षु) प्रजाओं में (सः) वह (कम्) सुख को और (जनम्) मनुष्य को (आ, चरति) आचरण करता अर्थात् प्राप्त होता है और (ते) आपके (वराय) श्रेष्ठ (मनसे) विचारशील चित्त के लिये (कः) कौन (यज्ञः) मेल करना रूप यज्ञ (शम्) सुख को करता है और (कः) कौन (अर्कः) आदर करने योग्य और (कतमः) कौनसा (सः) वह (होता) दाता होता है, इनके उत्तरों को कहिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वान् ! उन बुद्धि की वृद्धियों को कौन कर सके, उपकार के लिये बुद्धियों में कौन चलता है, कौन आदर करने योग्य और कौन दाता होता है, इन प्रश्नों के समाधानों को कहिये ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विदुषः प्रति किं प्रष्टव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! य इन्द्रः कुह स्वित्ता चकार कासु विक्षु स कं जनमाऽऽचरति ते वराय मनसे को यज्ञः शं चकार कोऽर्कः कतमः स होता भवतीत्युत्तराणि वद ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (ता) तानि (चकार) करोति (सः) (कुह) (स्वित्) अपि (इन्द्रः) परमैश्वर्यकर्ता (कम्) सुखम् (आ) (जनम्) (चरति) (कासु) (विक्ष) प्रजासु (कः) (ते) तव (यज्ञः) सङ्गतिमयः (मनसे) मननशीलाय (शम्) सुखम् (वराय) श्रेष्ठाय (कः) (अर्कः) अर्चनीयः (इन्द्र) दुःखविदारक (कतमः) (सः) (होता) दाता ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांस्तानि प्रज्ञावर्धनानि कः कर्तुं शक्नुयादुपकाराय प्रज्ञासु कश्चरति कः पूजनीयः कश्च दाता भवतीति समाधानानि वद ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वाना ! बुद्धिवर्धन कोण करतो? उपकारासाठी बुद्धी कोण चालवितो? कोण आदरणीय आहे व कोण दाता आहे? या प्रश्नांची उत्तरे द्या. ॥ ४ ॥