स नो॑ बोधि पुरए॒ता सु॒गेषू॒त दु॒र्गेषु॑ पथि॒कृद्विदा॑नः। ये अश्र॑मास उ॒रवो॒ वहि॑ष्ठा॒स्तेभि॑र्न इन्द्रा॒भि व॑क्षि॒ वाज॑म् ॥१२॥
sa no bodhi puraetā sugeṣūta durgeṣu pathikṛd vidānaḥ | ye aśramāsa uravo vahiṣṭhās tebhir na indrābhi vakṣi vājam ||
सः। नः॒। बो॒धि॒। पु॒रः॒ऽए॒ता। सु॒ऽगेषु॑। उ॒त। दुः॒ऽगेषु॑। प॒थि॒ऽकृत्। विदा॑नः। ये। अश्र॑मासः। उ॒रवः॑। वहि॑ष्ठाः। तेभिः॑। नः॒। इ॒न्द्र॑। अ॒भि। व॒क्षि॒। वाज॑म् ॥१२॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे इन्द्र ! स त्वं पुरएता सुगेषूत दुर्गेषु पथिकृद्विदानो नोऽस्मान् बोधि। य अश्रमास उरवो वहिष्ठाः सन्ति तेभिस्सह नो वाजमभि वक्षि ॥१२॥