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स ईं॒ स्पृधो॑ वनते॒ अप्र॑तीतो॒ बिभ्र॒द्वज्रं॑ वृत्र॒हणं॒ गभ॑स्तौ। तिष्ठ॒द्धरी॒ अध्यस्ते॑व॒ गर्ते॑ वचो॒युजा॑ वहत॒ इन्द्र॑मृ॒ष्वम् ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa īṁ spṛdho vanate apratīto bibhrad vajraṁ vṛtrahaṇaṁ gabhastau | tiṣṭhad dharī adhy asteva garte vacoyujā vahata indram ṛṣvam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। ई॒म्। स्पृधः॑। व॒न॒ते॒। अप्र॑तिऽइतः। बिभ्र॑त्। वज्र॑म्। वृ॒त्र॒ऽहन॑म्। गभ॑स्तौ। तिष्ठ॑त्। हरी॒ इति॑। अधि॑। अस्ता॑ऽइव। गर्ते॑। व॒चः॒ऽयुजा॑। व॒ह॒तः॒। इन्द्र॑म्। ऋ॒ष्वम् ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:20» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:10» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह प्रताप से युक्त राजा (वृत्रहणम्) जिससे मेघ का नाश करता है उस (वज्रम्) वज्र को (गभस्तौ) किरण में सूर्य जैसे (बिभ्रत्) धारण करता हुआ (अप्रतीतः) शत्रुओं से नहीं जाना गया (स्पृधः) स्पर्द्धा करते हैं जिनमें उनका और (ईम्) जल का (वनते) सेवन करता है और (हरी) घोड़े जैसे धारण और आकर्षण को, वैसे वा (अस्तेव) प्रेरणा करनेवाला सारथि जैसे वैसे (गर्ते) गृह में (अधि, तिष्ठत्) स्थित होता है, वैसे आप जो (वचोयुजा) वचन से युक्त करते वे दोनों (ऋष्वम्) बड़े (इन्द्रम्) बिजुली के सदृश राजा को (वहतः) पहुँचाते हैं, उनको वाहनों में युक्त करिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - राजा सदा ही अपने विचार को छिपावे, जब कार्य सिद्ध होवे तभी लोग प्रकट जानें और शस्त्रों को धारण कर सेनाओं को उत्तम प्रकार शिक्षा देकर बड़े ऐश्वर्य को प्राप्त होवे ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

स इन्द्रो वृत्रहणं वज्रं गभस्तौ सूर्य इव बिभ्रदप्रतीतः स्पृध ईं वनते हरी अस्तेव गर्तेऽधि तिष्ठत् तथा त्वं यौ वचोयुजा ऋष्वमिन्द्रं वहतस्तौ यानेषु युङ्क्ष्व ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (ईम्) जलम् (स्पृधः) स्पर्द्धन्ते येषु तान् (वनते) सम्भजति (अप्रतीतः) शत्रुभिरज्ञातः (बिभ्रत्) धरन् (वज्रम्) (वृत्रहणम्) येन वृत्रं हन्ति तत् (गभस्तौ) किरणे (तिष्ठत्) तिष्ठति (हरी) अश्वाविव धारणाकर्षणे (अधि) (अस्तेव) प्रेरकः सारथिरिव (गर्ते) गृहे। गर्त इति गृहनाम। (निघं०३.४) (वचोयुजा) यौ वचसा युङ्क्तस्तौ (वहतः) (इन्द्रम्) विद्युतमिव राजानम् (ऋष्वम्) महान्तम् ॥९॥
भावार्थभाषाः - राजा सदैव स्वमन्त्रं गोपयेद् यदा कार्यं सिद्ध्येत् तदैव जना प्रसिद्धं जानीयुः शस्त्राणि धृत्वा सेनाः सुशिक्ष्य महदैश्वर्यं प्राप्नुयात् ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजाने आपले विचार सदैव गुप्त ठेवावेत. जेव्हा कार्य पूर्ण होईल तेव्हाच लोकांसमोर प्रकट करावे. शस्त्रे-अस्त्रे बाळगून सेनेला उत्तम शिक्षित करून खूप ऐश्वर्य प्राप्त करावे. ॥ ९ ॥