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आ ते॒ शुष्मो॑ वृष॒भ ए॑तु प॒श्चादोत्त॒राद॑ध॒रादा पु॒रस्ता॑त्। आ वि॒श्वतो॑ अ॒भि समे॑त्व॒र्वाङिन्द्र॑ द्यु॒म्नं स्व॑र्वद्धेह्य॒स्मे ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā te śuṣmo vṛṣabha etu paścād ottarād adharād ā purastāt | ā viśvato abhi sam etv arvāṅ indra dyumnaṁ svarvad dhehy asme ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। ते॒। शुष्मः॑। वृ॒ष॒भः। ए॒तु॒। प॒श्चात्। आ। उ॒त्त॒रात्। अ॒ध॒रात्। आ। पु॒रस्ता॑त्। आ। वि॒श्वतः॑। अ॒भि। सम्। ए॒तु॒। अ॒र्वाङ्। इन्द्र॑। द्यु॒म्नम्। स्वः॑ऽवत्। धे॒हि॒। अ॒स्मे इति॑ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:19» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:8» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर सम्पूर्ण जनों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य के करनेवाले ! जैसे (अस्मे) हम लोगों के लिये (पश्चात्) पीछे से (स्वर्वत्) बहुत प्रकार सुख विद्यमान जिसमें उस (द्युम्नम्) प्रकाशस्वरूप यश वा धन को (एतु) प्राप्त हूजिये और (उत्तरात्) बाईं ओर से बहुत प्रकार सुख जिसमें उस प्रकाशस्वरूप यश वा धन को (आ) सब ओर से प्राप्त हूजिये और (अधरात्) नीचे से बहुविध सुखवाले प्रकाशस्वरूप यश वा धन को (आ) सब ओर से प्राप्त हूजिये तथा (विश्वतः) सब ओर से प्रकाशस्वरूप यश वा धन के (आ) सब प्रकार से (अभि, एतु) सम्मुख हूजिये और (अर्वाङ्) नीचे से बहुत सुखवाले सम्पूर्ण प्रकाशस्वरूप यश वा धन को (सम्) उत्तम प्रकार प्राप्त हूजिये तथा (पुरस्तात्) आगे से बहुत प्रकार सुख जिसमें उस प्रकाशस्वरूप यश वा धन को अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये, वैसे (ते) आप का (शुष्मः) उत्तम बलयुक्त (वृषभः) बलिष्ठ (आ) सब ओर से प्राप्त होवे और आप हम लोगों के लिये इसको (धेहि) धारण करिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे राजा और प्रजाजनो ! जैसे सब दिशाओं से सम्पूर्ण जनों को सुख और यश प्राप्त होवें, वैसे यत्न का अनुष्ठान करिये ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्सर्वैर्जनैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! यथास्मे पश्चात् स्वर्वद्द्युम्नमेतूत्तरात् स्वर्वद्द्युम्नमैतु। अधरात् र्स्ववद्द्युम्नमैतु विश्वतो द्युम्नमाभ्येतु, अर्वाङ् स्वर्वद् द्युम्नं समेतु पुरस्तात् स्वर्वद्द्युम्नं समेतु तथा ते शुष्मो वृषभ ऐतु। त्वमस्मभ्यमेतद्धेहि ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (ते) तव (शुष्मः) उत्तमबलः (वृषभः) बलिष्ठः (एतु) प्राप्नोतु (पश्चात्) (आ) (उत्तरात्) (अधरात्) (आ) (पुरस्तात्) (आ) (विश्वतः) सर्वतः (अभि) (सम्) (एतु) प्राप्नोतु (अर्वाङ्) योऽर्वागञ्चति (इन्द्र) परमैश्वर्यकारक (द्युम्नम्) प्रकाशमयं यशोधनं वा (स्वर्वत्) स्वर्बहुविधं सुखं विद्यते यस्मिंस्तत् (धेहि) (अस्मे) अस्मभ्यम् ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे राजप्रजाजना यथा सर्वाभ्यो दिग्भ्यस्सर्वान्त्सुखकीर्ती प्राप्नुयातां तथा यत्नमातिष्ठत ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा व प्रजाजनहो ! सगळीकडून सर्व लोकांना सुख व यश प्राप्त व्हावे असा प्रयत्न करा. ॥ ९ ॥