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जनं॑ वज्रि॒न्महि॑ चि॒न्मन्य॑मानमे॒भ्यो नृभ्यो॑ रन्धया॒ येष्वस्मि॑। अधा॒ हि त्वा॑ पृथि॒व्यां शूर॑सातौ॒ हवा॑महे॒ तन॑ये॒ गोष्व॒प्सु ॥१२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

janaṁ vajrin mahi cin manyamānam ebhyo nṛbhyo randhayā yeṣv asmi | adhā hi tvā pṛthivyāṁ śūrasātau havāmahe tanaye goṣv apsu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

जन॑म्। व॒ज्रि॒न्। महि॑। चि॒त्। मन्य॑मानम्। ए॒भ्यः। नृऽभ्यः॑। र॒न्ध॒य॒। येषु॑। अस्मि॑। अध॑। हि। त्वा॒। पृ॒थि॒व्याम्। शूर॑ऽसातौ। हवा॑महे। तन॑ये। गोषु॑। अ॒प्ऽसु ॥१२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:19» मन्त्र:12 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:8» मन्त्र:7 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वज्रिन्) अच्छे शस्त्र और अस्त्र के धारण करनेवाले राजन् ! आप (एभ्यः) इन (नृभ्यः) उत्तम प्रकार शिक्षित अग्रणी मनुष्यों के लिये उस (महि) महान् (मन्यमानम्) अभिमान करनेवाले (जनम्) मनुष्य का (रन्धया) नाश करिये और (अधा) इसके अनन्तर (येषु) जिनके निमित्त (शूरसातौ) शूरवीर विभक्त होते हैं जिस संग्राम में उसमें (अस्मि) हूँ उसकी रक्षा कीजिये (हि) जिससे (पृथिव्याम्) विस्तीर्ण भूमि में (गोषु) पृथिवियों वा धनों में और (अप्सु) जलों वा प्राणों में (तनये) सन्तान के लिये जिन (त्वा) आपको (हवामहे) स्वीकार करते हैं, वह आप (चित्) भी हम लोगों का सत्कार कीजिये ॥१२॥
भावार्थभाषाः - हे राजसम्बन्धी जनो ! जो मिथ्या अभिमान करनेवाला जन श्रेष्ठ पुरुषों को पीड़ा देवे, उसको दण्ड दीजिये और युद्धविद्या से सम्पूर्ण जनों का रक्षण करिये, जिससे भूमि में आप लोगों की प्रशंसा प्रसिद्ध होवे ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे वज्रिन् राजंस्त्वमेभ्यो नृभ्यस्तं महि मन्यमानं जनं रन्धयाऽधा येषु शूरसातावहमस्मि तं रक्षा, हि पृथिव्यां गोष्वप्सु तनये यं त्वा हवामहे स त्वं चिदस्मान्त्सत्कुरु ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (जनम्) (वज्रिन्) प्रशस्तशस्त्रास्त्रधारिन् (महि) महान्तम् (चित्) अपि (मन्यमानम्) अभिमानिनम् (एभ्यः) (नृभ्यः) सुशिक्षितेभ्यो नायकेभ्यः (रन्धया) हिंसय। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (येषु) (अस्मि) (अधा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (हि) यतः (त्वा) त्वाम् (पृथिव्याम्) विस्तीर्णायां भूमौ (शूरसातौ) शूराः सनन्ति विभजन्ति यस्मिन्त्संग्रामे तस्मिन् (हवामहे) आदद्महि (तनये) अपत्याय (गोषु) पृथिवीषु धनेषु वा (अप्सु) जलेषु प्राणेषु वा ॥१२॥
भावार्थभाषाः - हे राजजना यो मिथ्याभिमानी सत्पुरुषान् पीडयेत्तं दण्डयत, युद्धविद्यया सर्वेषां रक्षणं विधत्त यतो भूमौ युष्माकं प्रशंसा प्रसिद्धा भवेत् ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजजनांनो ! जो मिथ्या अभिमान करणारा माणूस श्रेष्ठ पुरुषांना त्रास देत असेल तर त्याला दंड द्या व युद्धविद्येने संपूर्ण लोकांचे रक्षण करा, ज्यामुळे जगात तुमची प्रशंसा व्हावी. ॥ १२ ॥