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म॒रुत्व॑न्तं वृष॒भं वा॑वृधा॒नमक॑वारिं दि॒व्यं शा॒समिन्द्र॑म्। वि॒श्वा॒साह॒मव॑से॒ नूत॑नायो॒ग्रं स॑हो॒दामि॒ह तं हु॑वेम ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

marutvantaṁ vṛṣabhaṁ vāvṛdhānam akavāriṁ divyaṁ śāsam indram | viśvāsāham avase nūtanāyograṁ sahodām iha taṁ huvema ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒रुत्व॑न्तम्। वृ॒ष॒भम्। व॒वृ॒धा॒नम्। अक॑वऽअरिम्। दि॒व्यम्। शा॒सम्। इन्द्र॑म्। वि॒श्व॒ऽसह॑म्। अव॑से। नूत॑नाय। उ॒ग्रम्। स॒हः॒ऽदाम्। इ॒ह। तम्। हु॒वे॒म॒ ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:19» मन्त्र:11 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:8» मन्त्र:6 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! हम लोग (इह) इस राज्यकर्म में जिसको (नूतनाय) नवीन (अवसे) रक्षण आदि के लिये (मरुत्वन्तम्) श्रेष्ठ मनुष्य विद्यमान जिसके उस (वृषभम्) अतिश्रेष्ठ पूर्ण बलवाले (वावृधानम्) अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त होते हुए (अकवारिम्) नहीं विद्यमान हैं शब्द करते हुए शत्रु जिसके उस (दिव्यम्) सुन्दर (शासम्) पक्षपात का त्याग करके शासन करनेवाले (विश्वासाहम्) सम्पूर्ण कष्ट को सहनेवाले (उग्रम्) तेजस्वी (सहोदाम्) बल देनेवाले (इन्द्रम्) शरीर, आत्मा और राजशोभा से अत्यन्त शोभित का (हुवेम) हम स्वीकार करें (तम्) उसका आप लोग भी आह्वान कर स्वीकार कीजिये ॥११॥
भावार्थभाषाः - राजजनों और प्रजाजनों को चाहिये कि सब के रक्षण के लिये सब से उत्तम गुण, कर्म और स्वभाववाले राजा को स्वीकार करें और वह राजा सब की सम्मति से सत्य, न्याय का निरन्तर आचरण करे ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! वयमिह यं नूतनायाऽवसे मरुत्वन्तं वृषभं वावृधानमकवारिं दिव्यं शासं विश्वासाहमुग्रं सहोदामिन्द्रं हुवेम तं यूयमप्याह्वयत ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुत्वन्तम्) प्रशस्ता मरुतो मनुष्या विद्यन्ते यस्य तम् (वृषभम्) अत्युत्तमं पूर्णबलम् (वावृधानम्) अतिवर्धमानम् (अकवारिम्) न विद्यन्ते कवा शब्दायमाना अरयो यस्य तम् (दिव्यम्) कमनीयम् (शासम्) पक्षपातं विहाय शासनकर्तारम् (इन्द्रम्) शरीरात्मराजश्रिया सुशुम्भमानम् (विश्वासाहम्) यो विश्वं समग्रं कष्टं सहते तम् (अवसे) रक्षणाद्याय (नूतनाय) नवीनाय (उग्रम्) तेजस्विनम् (सहोदाम्) बलप्रदम् (हि) अस्मिन् राज्यकर्मणि (तम्) (हुवेम) स्वीकुर्याम ॥११॥
भावार्थभाषाः - राजप्रजाजनैः सर्वेषां रक्षणाय सर्वेभ्य उत्तमगुणकर्मस्वभावो राजा मन्तव्यः स च राजा सर्वेषां सम्मत्या सत्यं न्यायं सततं कुर्यात् ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजजन व प्रजाजन यांनी सर्वांचे रक्षण करण्यासाठी सर्वात उत्तम गुण, कर्म, स्वभावाच्या राजाचा स्वीकार करावा व राजानेही सर्वांच्या संमतीने सत्य न्यायाचे सतत आचरण करावे. ॥ ११ ॥