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तव॒ क्रत्वा॒ तव॒ तद्दं॒सना॑भिरा॒मासु॑ प॒क्वं शच्या॒ नि दी॑धः। और्णो॒र्दुर॑ उ॒स्रिया॑भ्यो॒ वि दृ॒ळ्होदू॒र्वाद्गा अ॑सृजो॒ अङ्गि॑रस्वान् ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tava kratvā tava tad daṁsanābhir āmāsu pakvaṁ śacyā ni dīdhaḥ | aurṇor dura usriyābhyo vi dṛḻhod ūrvād gā asṛjo aṅgirasvān ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तव॑। क्रत्वा॑। तव॑। तत्। दं॒सना॑भिः। आ॒मासु॑। प॒क्वम्। शच्या॑। नि। दी॒ध॒रिति॑ दीधः। और्णोः॑। दुरः॑। उ॒स्रिया॑भ्यः। वि। दृ॒ळ्हा। उत्। ऊ॒र्वात्। गाः। अ॒सृ॒जः॒। अङ्गि॑रस्वान् ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:17» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:2» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (तव) आपकी (क्रत्वा) बुद्धि से और (तव) आपके (दंसनाभिः) कर्म्मों से हम लोग (आमासु) नहीं पाकदशा को प्राप्त हुओं में (तत्) उस (पक्वम्) उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त विज्ञान को प्राप्त होवें और आप इस को (शच्या) बुद्धि वा प्रजा से (नि, दीधः) धारण कराते हो और जो (उस्रियाभ्यः) किरणों से (दुरः) गृहद्वारों को (और्णोः) आच्छादित करे तथा (ऊर्वात्) हिंसन से (गाः) भूमियों को (उत्, असृजः) अच्छे प्रकार रचे और (अङ्गिरस्वान्) बहुत प्रकार के प्राण विद्यमान जिसमें वह (दृळ्हा) दृढ़ों को (वि) विशेष करके रचे उसका हम लोग सत्कार करें ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्वानों से शिक्षा को प्राप्त होकर सब का सत्कार करते हैं, वे राज्य को प्राप्त होकर सूर्य्य के सदृश प्रकाशित होते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्म्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वंस्तव क्रत्वा तव दंसनाभिर्वयमामासु तत्पक्वं विज्ञानं प्राप्नुयाम त्वमेतच्छच्या नि दीधः। य उस्रियाभ्यो दुर और्णोरूवीद् गा उदसृजोऽङ्गिरस्वान् दृळ्हा व्यसृजस्तं वयं सत्कुर्याम ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तव) (क्रत्वा) प्रज्ञया (तव) (तत्) (दंसनाभिः) कर्म्मभिः (आमासु) अपरिपक्वासु (पक्वम्) सुसंस्कृतम् (शच्या) प्रज्ञया प्रजया वा (नि) (दीधः) धारयसि (और्णोः) आच्छादयतु (दुरः) गृहद्वाराणि (उस्रियाभ्यः) किरणेभ्यः (वि) (दृळ्हा) दृढानि (उत्) (ऊर्वात्) हिंसनात् (गाः) भूमीः (असृजः) सृजेत् (अङ्गिरस्वान्) अङ्गिरसो बहुविधाः प्राणा विद्यन्ते यस्मिन् ॥६॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या विद्वद्भ्यः शिक्षां प्राप्य सर्वान्त्सत्कुर्वन्ति ते राज्यं प्राप्य सूर्य्यवत्प्रकाशन्ते ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्वानांकडून शिक्षण प्राप्त करून सर्वांचा सत्कार करतात त्यांना राज्य प्राप्त होऊन ती सूर्याप्रमाणे प्रकाशित होतात. ॥ ६ ॥