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अध॒ त्वष्टा॑ ते म॒ह उ॑ग्र॒ वज्रं॑ स॒हस्र॑भृष्टिं ववृतच्छ॒ताश्रि॑म्। निका॑मम॒रम॑णसं॒ येन॒ नव॑न्त॒महिं॒ सं पि॑णगृजीषिन् ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adha tvaṣṭā te maha ugra vajraṁ sahasrabhṛṣṭiṁ vavṛtac chatāśrim | nikāmam aramaṇasaṁ yena navantam ahiṁ sam piṇag ṛjīṣin ||

पद पाठ

अध॑। त्वष्टा॑। ते॒। म॒हः। उ॒ग्र॒। वज्र॑म्। स॒हस्र॑ऽभृष्टिम्। व॒वृ॒त॒त्। श॒तऽअ॑श्रिम्। निऽका॑मम्। अ॒रऽम॑नसम्। येन॑। नव॑न्तम्। अहि॑म्। सम्। पि॒ण॒क्। ऋ॒जी॒षि॒न् ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:17» मन्त्र:10 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:2» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजपुरुष कैसा वर्त्ताव करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ऋजीषिन्) सरल स्वाभाववाले (उग्र) तेजस्विन् ! (ते) आपके हस्त में (महः) बड़े (सहस्रभृष्टिम्) हजारों का छेदन करने और (शताश्रिम्) सैकड़ों का आश्रयण करनेवाले और (निकामम्) नित्य कामना किये जाते (अरमणसम्) जिसमें नहीं रमते हैं शत्रु उस (वज्रम्) शस्त्रविशेष को धारण कराता हूँ (अध) इसके अनन्तर (येन) जिससे (त्वष्टा) छेदन करनेवाले आप (नवन्तम्) स्तुति करते हुए नम्र के सदृश को (अहिम्) मेघ को जैसे सूर्य्य, वैसे (सम्, पिणक्) अच्छे प्रकार पीसते हैं तथा (ववृतत्) वर्त्ताव करते हैं, उन आपको हम लोग भी धारण करें ॥१०॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे वीरपुरुषो ! जैसे धनुर्वेद के जाननेवाले वीरपुरुष शस्त्रों को धारण करें, वैसे आप लोग भी धारण करो ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजपुरुषाः कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

हे ऋजीषिन्नुग्र ! ते हस्ते महः सहस्रभृष्टिं शताश्रिं निकाममरमणसं वज्रं धारयाम्यध येन त्वष्टा भवान्नवन्तमहिं सूर्य्य इव सम्पिणक् ववृतत् तं वयमपि धरेम ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अध) आनन्तर्य्ये (त्वष्टा) छेदकः (ते) तव (महः) महान्तम् (उग्र) तेजस्विन् (वज्रम्) शस्त्रविशेषम् (सहस्रभृष्टिम्) सहस्राणां भृज्जकं छेदकम् (ववृतत्) वर्त्तते (शताश्रिम्) यः शतान्याश्रयति तम् (निकामम्) यो नित्यं कम्यते तम् (अरमणसम्) यस्मिन्न रमन्ते शत्रवस्तम् (येन) (नवन्तम्) स्तुवन्तं नम्रमिव (अहिम्) मेघम् (सम्) (पिणक्) पिनष्टि (ऋजीषिन्) ऋजीषि सरलत्वं यस्यास्ति तत्सम्बुद्धौ ॥१०॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे वीरपुरुषा यथा धनुर्वेदविदो वीरपुरुषाः शस्त्राणि धरेयुस्तथा यूयमपि धरत ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे वीर पुरुषांनो! जसे धनुर्वेद जाणणारे वीर पुरुष शस्त्रे धारण करतात तसे तुम्हीही धारण करा. ॥ १० ॥