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तव॒ प्र य॑क्षि सं॒दृश॑मु॒त क्रतुं॑ सु॒दान॑वः। विश्वे॑ जुषन्त का॒मिनः॑ ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tava pra yakṣi saṁdṛśam uta kratuṁ sudānavaḥ | viśve juṣanta kāminaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तव॑। प्र। य॒क्षि॒। स॒म्ऽदृश॑म्। उ॒त। क्रतु॑म्। सु॒ऽदान॑वः। विश्वे॑। जु॒ष॒न्त॒। का॒मिनः॑ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अध्यापक और पढ़नेवाले परस्पर कैसा वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जो (सुदानवः) श्रेष्ठ दान के दाता (विश्वे) सब (कामिनः) कामना करनेवाले जन (तव) विद्वान् आपके (सन्दृशम्) अच्छे दर्शन (उत) और (क्रतुम्) बुद्धि वा कर्म्म का (जुषन्तु) सेवन करते हैं, उन का आप उसके दान से (प्र, यक्षि) मेल कराइये ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! जैसे विद्या की कामना करनेवाले आप लोगों की कामना करते हैं, वैसे ही आप लोग विद्यार्थियों की कामना करो ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरध्यापकाऽध्येतारः परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! ये सुदानवो विश्वे कामिनो जनास्तव सन्दृशमुत क्रतुं जुषन्त तांस्त्वं तद्दानेन प्र यक्षि ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तव) विदुषः (प्र) (यक्षि) यज सङ्गमय (सन्दृशम्) सम्यग्दर्शनम् (उत) (क्रतुम्) प्रज्ञां कर्म्म वा (सुदानवः) शोभनदानाः (विश्वे) सर्वे (जुषन्त) सेवन्ते (कामिनः) कामयितुं शीलाः ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! यथा विद्याकामा भवतः कामयन्ते तथैव भवन्तो विद्यार्थिनः कामयन्ताम् ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो! जशी विद्येची कामना करणारे (विद्यार्थी) तुमची कामना करतात तशीच तुम्ही विद्यार्थ्यांची कामना करा. ॥ ८ ॥