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प्र दे॒वं दे॒ववी॑तये॒ भर॑ता वसु॒वित्त॑मम्। आ स्वे योनौ॒ नि षी॑दतु ॥४१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra devaṁ devavītaye bharatā vasuvittamam | ā sve yonau ni ṣīdatu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। दे॒वम्। दे॒वऽवी॑तये। भर॑त। व॒सु॒वित्ऽत॑मम्। आ। स्वे। योनौ॑। नि। सी॒द॒तु॒ ॥४१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:41 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:29» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:41


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या प्राप्त करने योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् जनो ! आप लोग (देववीतये) श्रेष्ठ गुणों की प्राप्ति के लिये (वसुवित्तमम्) अतिशय धन को जानने और (देवम्) देनेवाले को (स्वे) अपने (योनौ) गृह में (प्र, आ, भरता) उत्तमता से अच्छे प्रकार धारण करिये वा हरिये, जिससे मनुष्य सुख से (नि, षीदतु) निरन्तर स्थिर होवे ॥४१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! आप श्रेष्ठ गुणों की प्राप्ति के लिये अग्नि आदि पदार्थों को जानिये ॥४१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं प्राप्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! यूयं देववीतये वसुवित्तमं देवं स्वे योनौ प्राऽऽभरता येन मनुष्यः सुखेन निषीदतु ॥४१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (देवम्) दातारम् (देववीतये) दिव्यगुणप्राप्तये (भरता) धरत हरत वा (वसुवित्तमम्) अतिशयेन वसु वेत्ति तम् (आ) (स्वे) स्वकीये (योनौ) गृहे (नि) (सीदतु) ॥४१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! भवन्तो दिव्यगुणप्राप्तयेऽग्न्यादिपदार्थान् विजानन्तु ॥४१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! तुम्ही श्रेष्ठ गुणांच्या प्राप्तीसाठी अग्नी इत्यादी पदार्थ जाणा. ॥ ४१ ॥