वांछित मन्त्र चुनें

ते ते॑ अग्ने॒ त्वोता॑ इ॒षय॑न्तो॒ विश्व॒मायुः॑। तर॑न्तो अ॒र्यो अरा॑तीर्व॒न्वन्तो॑ अ॒र्यो अरा॑तीः ॥२७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

te te agne tvotā iṣayanto viśvam āyuḥ | taranto aryo arātīr vanvanto aryo arātīḥ ||

पद पाठ

ते। ते॒। अ॒ग्ने॒। त्वाऽऊ॑ताः। इ॒षय॑न्तः। विश्व॑म्। आयुः॑। तर॑न्तः। अ॒र्यः। अरा॑तीः। व॒न्वन्तः॑। अ॒र्यः। अरा॑तीः ॥२७॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:27 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:26» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:27


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिए, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के समान विद्या से प्रकाशमान ! जो (ते) आप का (अर्य्यः) स्वामी आज्ञा देवे उसको आप करिये और जो (त्वोताः) आप से रक्षित (इषयन्तः) अन्न की कामना करते और (विश्वम्) सम्पूर्ण (आयुः) जीवन के (तरन्तः) पार होते हुए (अरातीः) नहीं विद्यमान दान जिनमें उन कृपण विरोधियों का (वन्वन्तः) विभाग करते हुए तथा (अरातीः) जिनमें दान नहीं उन शत्रुओं को विशेष करके जीतते हैं, वे (ते) आपके सम्बन्धी होवें, आप इनके (अर्य्यः) स्वामी होओ ॥२७॥
भावार्थभाषाः - जो ब्रह्मचर्य आदि से रोगों को दूर करके चिरञ्जीवी होवें, वे धार्मिक सम्पूर्ण कार्य्यों में अध्यक्ष हों ॥२७॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यस्तेऽर्य आज्ञापयेत्तत्त्वं कुरु। ये च त्वोता इषयन्तो विश्वमायुस्तरन्तोऽरातीर्वन्वतोऽरातीर्विजयन्ते ते तव सम्बन्धिनः सन्तु त्वमेषामर्य्यो भव ॥२७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) (ते) तव (अग्ने) अग्निरिव विद्यया प्रकाशमान (त्वोताः) त्वया रक्षिताः (इषयन्तः) इषमन्नं कामयमानाः (विश्वम्) सर्वम् (आयुः) जीवनम् (तरन्तः) उल्लङ्घयन्तः (अर्य्यः) स्वामी (अरातीः) न विद्यते रातिर्दानं येषु तान् कृपणान् विरोधिनः (वन्वन्तः) विभजन्तः (अर्य्यः) (अरातीः) ॥२७॥
भावार्थभाषाः - ये ब्रह्मचर्य्यादिना रोगान्निवार्य्य चिरञ्जीविनः स्युस्ते धार्मिकाः सर्वकार्य्येष्वध्यक्षा भवन्तु ॥२७॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे ब्रह्मचर्य इत्यादींनी रोग दूर करून दीर्घायु होतात ते धार्मिक असून संपूर्ण कार्यात मुख्य असतात. ॥ २७ ॥